छत्तीसगढ़ की पारंपरा को जीवित रखने के लिए महिलाये कर रही सुवा नृत्य।
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सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य की स्त्रियों का एक प्रमुख है, जो कि समूह में किया जाने वाला नृत्य है। ग्रामीण स्त्रियों की भावना, उनके सुख-दुख की अभिव्यक्ति और उनके अंगों में ‘सुवा नृत्य’ या ‘सुवना’ में देखने को मिलता है। ‘सुआ नृत्य’ का आरंभ दीपावली के कुछ दिन पहले से ही हो जाता है। इसके बाद यह नृत्य अगहन मास तक चलता है।
प्रदेश की पहचान छत्तीसगढ़ी पारंपरिक व सांस्कृतिक सुआ नृत्य गीत की परंपरा धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर है। दशहरा पर्व के बाद से ही घरों में सुआ नर्तक दलों की दस्तक शुरू हो जाती थी, जो अब बहुत ही विरल दिखाई पड़ रही है। हालांकि पुरानी परंपरा और सभ्यता के अनुसार बड़ों की जगह बच्चों को सुआ नृत्य के लिए घर-दुकानों में घुमते देखा जा सकता हैं। लेकिन यह परंपरिक सुवा नृत्य विलुप्त होती जा रही है। आसपास के परिक्षेत्रीय ग्रामीण इलाकों में दीपावली पर्व के पूर्व सुआ नृत्य की हलचल व धूम दिखाई पड़ती थीं।
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अब के दिनों में यहीं कहीं कहीं एकल जगहों पर दिखाई पड़ रही है। जिसका जिम्मेदार आज की पीढ़ियां अपना ज्यादातर समय मोबाइल व अन्य साधनों पर बिता रहे है। इसके चलते इसका व्यापक असर छोटे बच्चों पर भी पड़ रहा है। आलम यह है कि नगर-गांव लगभग सभी जगहों पर अब सुआ नृत्य गीत को लेकर लोग उतने उत्साहित नहीं है। जितने पहले के लोग हुआ करते थे। एक प्रकार से देखा जाए तो सुआ नृत्य के लिए बच्चों में रूचि साल-दर साल कम हो रही है।
छत्तीसगढ़ की पारंपरिक सुआ नृत्य को जीवित रखने व परंपरा का निर्वहन करने टोकरी में तोता और उसके चारों ओर नृत्य करती महिलाए व छोटी छोटी कन्याओं का नजारा दिवाली के नजदीक आने पर देखा जा सकता है । शहर के आसपास गांव के दर्जनों महिलाओं की टोली मादर मंजीरों के थाप के साथ सुआ नृत्य करने घरों में पहुचती है, हफ्तेभर सुआ नृत्य कर महिलाये अपना दीवाली खर्च निकल लेती है, व इस्से परम्परा का बोध भी हो जाता है , लेकिन अब शहर में सम्मान नही मिलने से ग्रामीण महिलाये सुआ नृत्य करने नही पहुँच रही है ।शहर में बच्चों की टोली ही नजर आती है । स्कूली बच्चों ग्रुप में घरों में सुवा नृत्य कर परंपरा को निभा रहे है । ग्रामीण महिलाओं ने कहा कि सम्मान नही मिलने से महिलाये व युवतियों सुआ नृत्य करना ही बंद कर दिए । दीवाली आगमन का संदेश सूआ गीत व नृत्य से हो जाती है, अब तो यदि कहीं दृश्य दिखाई पड़ता है तो महिलाये पूरा गीत भी नही गाती है, सूआ नृत्य गीत अब औपचारिक हो गई है ।
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महिलाये व बच्चों ने बताया- शगुन देने से कतराते है व्यपारी
पिछले कई वर्षों से सुवा नृत्य करनै वाली महिलाओं की टोली ने बताया कि अब इस परमपरा को शहर में महत्व नही मिल रहा है कई बार सुवा नृत्य करने के बाद व्यपारी शगुन देने से कतराते है जिससे कई बार दुर्व्यहार सहना पड़ता है अब हम तो हमारी छत्तीसगढी संस्कृति की परंपरा बनाये रखने के लियेहम लोग प्रतिवर्ष सुवा नृत्य करते है ।