
राजिम 26 अगस्त। भौगोलिक दृष्टिकोण से राजिम जिला बनने का पूरी योग्यता रखता है। पर्यटन के क्षेत्र में पूरे प्रदेश में इनका कोई सानी नहीं है। खुद धर्म नगरी राजिम में सातवीं से लेकर 14 वीं शताब्दी तक बनाए गए मंदिरों में उत्कृष्ट कला नक्काशी तथा छत्तीसगढ़ राज्य के इतिहास की जानकारी यहां के शिलालेख से मिलती है।
प्रसिद्ध राजीवलोचन मंदिर के महामंडप में दो शिलालेख उत्कीर्ण हैं तो संगम के बीच में स्थित कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर के महामंडप में एक शिलालेख मौजूद है यह कुटिल एवं नागरी लिपि में है। जिस तरह से गया, वाराणसी, काशी, उज्जैन, हरिद्वार, जगन्नाथ पुरी,प्रयाग आदि तीर्थ स्थल में लोगों की श्रद्धा विश्वास है उसी भांति त्रिवेणी संगम राजिम के प्रति लोगों की श्रद्धा कूट कूट कर भरी हुई है जिसके परिणाम स्वरूप प्रदेश शासन के द्वारा प्रतिवर्ष राजिम मांघी पुन्नी मेला का वृहद आयोजन देश विदेश में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रही है।
यहां सातवीं से लेकर चौदहवीं शताब्दी के मध्य बनाए गए कलचुरी कालीन मंदिर उत्कृष्ट कलाकृति का अनोखा नमूना है। जिला बनने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तथा दुनिया भर के पर्यटक पर्यटन एवं तीर्थटन के लिए पहुंचेंगे जिससे व्यापारिक गतिविधियां भी तेज होगी। राजिम से पांच-पांच कोस की दूरी पर 5 स्वयंभू शिवपीठ राजिम जिला में इन्हें जोड़ दिया जाना चाहिए इनमें से पटेश्वरनाथ महादेव पटेवा एवं चंपकेश्वर नाथ महादेव चंपारण रायपुर जिला तथा गोबरा नवापारा तहसील में स्थित है। ब्रह्मकेश्वरनाथ महादेव बम्हनी महासमुंद जिला में है जबकि हथखोज तक राजिम तहसील आता है। सतधारा नदी पार करने के बाद यह स्वयंभू शिव लिंग स्थित है। कम से कम तीन किलोमीटर की दूरी को बढ़ाकर बम्हनी तक राजिम में जोड़ दिया जाए। फनीकेश्वरनाथ महादेव फिंगेश्वर अर्थात राजिम से 17 किलोमीटर की दूरी में है। कर्पुरेश्वरनाथ महादेव कोपरा भी राजिम से 17 किलोमीटर पर ही स्थित है। वर्तमान में यह दोनों शिवपीठ गरियाबंद जिला में है।
इनके अलावा राजिम जिला में अनेक धार्मिक स्थल होंगे जिनमें प्रमुख रूप से प्रसिद्ध राजीवलोचन, कुलेश्वर नाथ धाम, मौली माता, मार्कंडेय आश्रम, देवी रमई पाठ, मां महामाया मंदिर, सिद्ध, जतमई घटारानी,झरझरा माता आदि। धार्मिकता के साथ-साथ यह सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत प्रगाढ़ है। राजिम नवापारा दोनों के विशाल भूभाग में लोक कलाकारों की सामंजस्य बनी रहती है तथा मिलकर कला को नए पहचान देते हैं। साहित्यिक दृष्टिकोण से सन 1881 में पंडित सुंदरलाल शर्मा के जन्म लेने के साथ ही साहित्य की परंपरा चल पड़ी प्रदेश के अधिकांश कवि एवं साहित्यकार राजिम से होकर ही आगे बढ़े हैं वर्तमान में नवापारा राजिम, बेलर, पांडुका, कोपरा, फिंगेश्वर में साहित्यिक समितियां गठित है। जिसके माध्यम से लगातार साहित्य को आकार मिल रहा है।