ज्योतिष/ धर्मदेशबड़ी खबर

शाही परिवार 400 साल पुरानी दुर्गा पूजा का आज भी कर रहा आयोजन…

असम: धुबरी में गौरीपुर शाही परिवार द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा की धूमधाम और भव्यता भले ही कम हो गई हो, लेकिन शाही परिवार के वंशज हर साल असम की सबसे पुरानी पारिवारिक दुर्गा पूजा को पूरी श्रद्धा के साथ आयोजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।

शाही परिवार के सदस्य प्रबीर बरुआ ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि ‘शोला पीठ’ से बनी मूर्ति की अनूठी विशिष्टता के साथ 403 साल पुरानी परंपरागत दुर्गा पूजा में भव्यता भले ही कम हो गई, लेकिन गौरीपुर के लोग, जाति या पंथ के इतर बड़ी संख्या में उत्सव में भाग लेते हैं।

उन्होंने कहा कि यह पूजा पहली बार 1620 में रंगमती में राजा कबी शेखर के तत्वावधान में शुरू की गई थी, लेकिन 1850 में राजा प्रताप चंद्र बरुआ द्वारा इसे गौरीपुर में स्थानांतरित कर दिया गया और तब से, 10 दिवसीय त्योहार अपनी परंपराओं और अनुष्ठानों को बरकरार रखते हुए मनाया जाता है।

गौरीपुर महामाया मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष बरुआ ने कहा, ‘‘जमींदारी प्रथा और इसकी भव्यता अब पहले जैसी तो नहीं है, लेकिन हमने परंपराओं को बनाए रखा है और विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।’’ ‘महामाया’, शाही परिवार की ‘कुल देवी’ हैं।

शाही परिवार के पुजारी अरूप लोचन चक्रवर्ती ने अष्टधातु से बनी देवी की मूर्ति के समक्ष अनुष्ठान किया और ‘महालया’ से एक दिन बाद इसे महल के पास महामाया मंदिर से पालकी पर बिठाकर दुर्गा मंदिर तक शोभायात्रा के रूप में लाया गया।

राजशाही के दौर में यह यात्रा काफी भव्यता के साथ निकाली जाती थी और 20 से 25 हाथी इसमें शामिल होते थे तथा इसमें भारी भीड़ जुटती थी। बरुआ ने कहा कि छठे दिन या ‘षष्ठी’ पर पूजा के लिए ‘शोला पीठ’ से बनी देवी की एक मूर्ति स्थापित की जाती है। उन्होंने बताया कि 10वें दिन, इसे एक नाव में ब्रह्मपुत्र-गदाधर नदी के संगम पर ले जाया जाता है, जहां मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।

बरुआ ने कहा कि नाविक एक मुस्लिम परिवार से होता है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
उन्होंने कहा कि विसर्जन के बाद, शाही परिवार गौरीपुर के लोगों के कल्याण और खुशहाली के लिए महल में ‘मंगल चंडी’ पूजा आयोजित करता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button