निर्जला एकादशी व्रत का फल पाने के लिए भीमसेनी एकादशी कथा का पाठ अवश्य करें

निर्जला एकादशी को बाकी सभी एकादशी में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की भी विशेष कृपा रहती है। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस बार यह व्रत बुधवार 31 मई को रखा जाएगा। इस दिन व्रत करने के साथ साथ निर्जला एकादशी की कथा पढ़ने से भी पुण्य प्राप्त होता है। आइए जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत की कथा। (nirjala ekadashi fast story)
निर्जला एकादशी व्रत कथा
महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम ने एक बार व्यास जी से कहा कि भगवन्! युधिष्ठिर, अर्जुन नकुल, सहदेव, माता कुंती और द्रौपदी सभी एकादशी के दिन उपवास करते हैं और वह मुझसे भी इस व्रत को करने के लिए कहते हैं। आप तो जानते ही हैं कि मुझे भूख बर्दाश्त नहीं होती है। इसलिए मैं कैसे एकादशी वाले दिन उपवास रख सकता हूं। मैं दान देकर और भगवान वासुदेव की पूजा अर्चना करके उन्हें खुश कर उनकी कृपा प्राप्त करना चाहता हूं। इसलिए आप कृपया मुझे बताए कि मैं इस व्रत को कैसे करूं। क्या बिना अपनी काया को कष्ट दिये मैं यह व्रत कर सकता हूं।
पांडु पुत्र भीम की ये बातें सुनकर मुनि वेदव्यास ने कहा यदि तुम स्वर्गलोक जाना चाहते हो और नरक से सुरक्षित भी रहना चाहते हो तो तुम्हें केवल एक ही एकादशी का व्रत रखना होगा। इतना सुनते ही भीम ने बोला कि सिर्फ एक समय का भोजन करके तो मैं नहीं रह पाउंगा। मेरे पेट में वृक नामक अग्नि निरंतर प्रज्वलित रहती है। कम भोजन करने पर भी मेरी भूख शांत नहीं होती है।
इसलिये हे ऋषिवर आप कृपा करके मुझे ऐसा व्रत बताइए कि जिसके करने से ही मेरा कल्याण हो जाए। ये सुन व्यास जी ने कहा कि ज्येष्ठ पक्ष की शुक्ल एकादशी को निर्जला व्रत किया करो। स्नान आचमन को छोड़कर पानी का ग्रहण नहीं करना। आहार लेने से व्रत खंडित हो जाता है, इसलिये तुम आहार भी मत खाना। तुम जीवन पर्यंत इस व्रत का पालन करो। इससे तुम्हारे पूर्व जन्म में किए गए एकादशियों के वाले दिन खाये गये अन्न के कारण मिलने वाला पाप नष्ट हो जाएगा। (nirjala ekadashi fast story)
साथ ही इस दिन तुम्हें ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मंत्र का उच्चारण करो। साथ ही गौ का दान करना भी उत्तम माना गया है। महर्षि व्यास की आज्ञा के अनुसार पांडु पुत्र भीम ने बड़ी हिम्मत के साथ निर्जला एकादशी का यह व्रत किया। लेकिन वह सुबह होते होते मूर्च्छित हो गये। तब उनके चारों भाइयों ने उन्हें गंगाजल, तुलसी का चरणामृत पिलाकर मूर्च्छा से बाहर निकाला। कहते हैं कि तभी भीम पाप मुक्त हो गए।