
इंडियन पीनल कोड के धारा 376 के तहत किसी महिला के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में माना जाता है. अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो वह इस कानून के नजर में दोषी है और उस पर कार्यवाही करने का प्रावधान है. जब किसी महिला-पुरुष का पारस्परिक मसला कोर्ट के दायरे में आ जाता है,
तो समाज की सांत्वना तो महिला के साथ रहती ही है लेकिन न्यायालय और भारतीय दंड संहिता के धाराएं भी उस महिला के पक्ष में ही दिखाई देती हैं. दहेज, छेड़छाड़, बलात्कार आदि कुछ ऐसे ही अपराध हैं जिनके खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने पर अधिक संभावना इसी बात की रहती है कि निर्णय महिला के ही पक्ष में होगा.
निश्चित तौर पर भारतीय पुरुष प्रधान समाज को कानून के संरक्षण की सख्त आवश्यकता है लेकिन कई बार ऐसे हालात भी उजागर होते हैं जिनमें महिलाएं ही पुरुषों पर हावी नजर आती हैं जिसका सीधा और शायद एकमात्र कारण बनता है भारतीय कानून.
हाल ही में तिल्दा-नेवरा क्षेत्र एक सप्ताह 3 मसले सामने आया जिसमें लड़कियों ने अपने प्रेमी पर यह आरोप लगाया कि शादी का झांसा देकर वह एक लंबे समय तक उसके साथ बलात्कार करता रहा. लेकिन जब विवाह की बात आई तो उसने बाहाना बना दिया !!(called rape)
न्यायालय के निर्णय के अनुसार विवाह से पहले दोनों ने आपसी सहमति से संबंध बनाए थे, इसीलिए अगर विवाह नहीं भी हुआ तो इसके लिए किसी भी रूप में पुरुष अकेला दोषी नहीं कहा जा सकता. लड़कियो को इस बात की जानकारी थी कि वह अविवाहित है और भारतीय समाज में विवाह से पहले शारीरिक संबंध बनाना अनैतिक है.
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उपरोक्त मसले और न्यायालय के निर्णय पर गंभीरता से विचार किया जाए तो कुछ नारीवादी लोग भले ही इस मुद्दे को महिला के साथ होता अन्याय समझेंगे लेकिन क्या जानबूझ कर और पूरे होश में बनाए गए आपसी संबंध पुरुष को ही दोषी ठहराते हैं? क्या इसमें लड़कियो की कोई गलती नहीं है जो उसने विवाह से पहले केवल विश्वास के आधार पर अपने प्रेमी के साथ संबंध बनाए. लिव इन संबंधों में भी रहने वाले जोड़े कानून के संरक्षण में दायरे में नहीं आते तो ऐसे में विवाह पूर्व अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध स्थापित करने वाले जोड़े में पुरुष को दोषी क्यों कहा जाए, क्या लड़कियां इसके लिए समान रूप से दोषी नहीं है?
भारतीय कानून व्यवस्था हमेशा महिलाओं की पक्षधर रही है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि बहुत सी लड़कियाँ कानून को अपने फायदे के लिए भी प्रयोग करती हैं.
भले ही लड़कियो द्वारा लगाए गए आरोप झूठे और बेमानी हों लेकिन समाज में महिला आज भी एक पीड़िता के रूप में ही देखी जाती है. ऐसा भी नहीं है कि सब महिलाएं/ लड़कियाँ झूठी और पुरुष शोषक की भूमिका में ही रहती हैं लेकिन अगर परिस्थितियों का निष्पक्ष रूप से विश्लेषण किया जाए तो यह समाज के हित के लिए ही सहायक होगा.(called rape)
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