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रायपुर में दैनिक वेतन भोगी वन कर्मचारियों पिछले 24 दिनों से कर रहे हड़ताल,कैंडल रैली निकाल कर जगा रहे सरकार को

रायपुर-अपनी जान जोखिम में डालकर जंगलों की सुरक्षा करते हैं. कीमती लकड़ी की चोरी या जंगलों में आगजनी जैसी घटना. कई बार हमारा सामना लकड़ी की अवैध कटाई करने वाले तस्करों से भी होता है इस सब काम में काफी जोखिम होता है.

जिसमें किसी तरह का कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है.”यह कहना है दैनिक वेतन भोगी वन कर्मचारियों का जो करीब 24 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद की किरण तक जागी जब उन्हें नंद कुमार बघेल, मुख्यमंत्री बघेल के पिता का साथ मिला , आशा बंधी, उम्मीद बंधी कि उनकी समस्या सुनी जाएगी ,कम से कम उन्हें मुख्यमंत्री से मिलने का अवसर दिया जाएगा लेकिन उनकी उम्मीद भी बहुत जल्दी टूट गई, आशा निराशा में बदल गई.

क्योंकि उन तक यह संदेश आया, दैनिक वेतन भोगी वन कर्मचारियों को यह संदेश दिया गया कि पहले हड़ताल खत्म करें उसके बाद ही मुख्यमंत्री से मिलाने पर विचार किया जाएगा। कर्मचारियों के आंदोलन को करीब 24 दिन हो रहे हैं लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई भी अधिकारी उनकी सुध लेने नहीं आया है.

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जिसकी वजह से कर्मचारियों में काफी रोष व्याप्त है। कल कैंडल मार्च निकालकर भी कर्मचारियों ने अपना रोष वयकत किया है कर्मचारियों का कहना है कि अधिकारियों से मिलने के लिए वे लगातार कोशिश कर रहे हैं उनसे संपर्क करने की, उन से बात करने का प्रयास जारी है लेकिन अधिकारी पीछे हट रहे हैं.

अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू से मुलाकात कर कर्मचारियों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा है और और उन से निवेदन किया है कि उन्हें मुख्यमंत्री से मिलने का समय दिया जाए और उनकी नियमितीकरण की मांग को स्वीकार किया जाए उन्हें अपर मुख्य सचिव की तरफ से आश्वस्त किया गया है कि उनका संदेश मुख्यमंत्री तक भेजा जाएगा और कर्मचारी इसी उम्मीद में बैठे हुए हैं कि कब उनहे मुख्यमंत्री से मिलने का अवसर प्राप्त हो.

पूरे प्रदेश में वन विभाग में काम करने वाले दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की संख्या लगभग 6500 है. जिसमें से 500 ऐसे दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हैं, जो युवावस्था में वन विभाग में अपनी सेवाएं देनी शुरू की थी.

आज इन दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की उम्र 55 के पार हो चुकी है. बावजूद इसके आज भी वन विभाग ने अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वन विभाग में रिटायरमेंट की उम्र 62 वर्ष है. ऐसे में जो दैनिक वेतन भोगी जो उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं. उनके रिटायरमेंट में महज 5 से 7 साल ही रह गए हैं.

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रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके इन दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की आंखों में एक ही सपना है. सरकार उन्हें स्थाई और नियमितीकरण का तोहफा दे. जिससे वे सभी अपना और अपने परिवार का अच्छे से भरण पोषण कर सकें. वन विभाग में दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम करने वाले कर्मचारियों की 2 सूत्रीय मांगें हैं. जिसमें पहली मांग स्थायीकरण और दूसरी मांग नियमितीकरण की है.

इन कर्मचारियों का कहना है कि जो कर्मचारी 2 साल की सेवा पूर्ण कर लिए हैं उन्हें, स्थाई किया जाए और जो दैनिक वेतन भोगी 10 वर्ष की सेवा पूरा कर चुके हैं उन्हें नियमित किया जाए. पूरे प्रदेश में वन विभाग में दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या लगभग 6500 हैं.(Daily wage forest workers)

इन कर्मचारियों को वेतन के रूप में प्रतिमाह महज 9500 से 11000 हज़ार रुपये ही वेतन मिलता है. जो वन विभाग में वाहन चालक कंप्युटर, ऑपरेटर, रसोईया और बेरियर का काम करने के साथ ही जंगल का काम देखते हैं.

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वन विभाग में कुशल अर्ध कुशल और अकुशल तीन श्रेणियों में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों का वेतन निर्धारित किया गया है. जिसमें कुशल श्रेणी में 11,000 रुपए वेतन हैं. अर्ध कुशल श्रेणी में 10,000 रुपये वेतन है और अकुशल श्रेणी में 9500 रुपए वेतन है.” उन्होंने बताया कि “उम्र के इस अंतिम पड़ाव में जंगलों में जाकर दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को जंगली जंगली जानवरों की सुरक्षा करने के साथ ही वनों की अवैध कटाई पर भी निगरानी रखना होता है. इसके साथ ही जंगलों में होने वाली आगजनी से जंगलों को बचाना होता है. सरकारी नौकरी करने वाले वनरक्षक जंगल नहीं जाते हैं.

तो पूरी जिम्मेदारी इन्हीं दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की रहती है. कई बार इनका सामना लकड़ियों की अवैध कटाई करने वाले तस्करों से भी होती है.” उन्होंने RJ news के माध्यम से अपील की है कि सरकार उन्हें स्थाई और नियमितीकरण का तोहफा दे दे. जिससे वे अपना और अपने परिवार का भरण पोषण अच्छे से कर सके और आने वाले समय में खुशहाल जीवन जी सके.

उन्होंने आगे कहा कि “सरकार उन्हें नियमित करती है, तो आने वाले समय में उन्हें फिर से वोट देंगे. अगर सरकार इनकी बातों पर अमल नहीं करती है, तो आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देने के लिए दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को सोचना पड़ेगा.”(Daily wage forest workers)

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