‘बहारों फूल बरसाओ’ के लिए मिला था फिल्म-फेयर, फिल्मों के टाइटल साॅन्ग लिखने में मास्टर माने जाते थे हसरत जयपुरी साहब
RJ NEWS- राजस्थान की मिटटी ने वीर योद्धा भी पैदा किए हैं तो कवि, शायर और गीतकार भी। इस मिटटी की ही करामात है कि जब भी कोई नाम कमाने निकला वो शख़्स हीरा बनकर देश-दुनिया में चमका। बाॅलीवुड के मशहूर गीतकार हसरत जयपुरी ने भी इसी धरती पर जन्म लिया था। वैसे तो हरसत साहब को दुनिया छोड़े करीब 23 बरस हो चुके हैं, लेकिन वे अपने लिखे एक से बढ़कर एक नगमों की बदौलत आज भी लोगों के दिलों-दिमाग में बसे हुए हैं। उनके एक शायर से लेकर बस कंडक्टर बनने, मिटटी के खिलौने बेचने से फैक्ट्री में मजदूरी करने और बाॅलीवुड पहुंचने तक का सफ़र बड़ा दिलचस्प रहा। हसरत जयपुरी साहब की 100वीं बर्थ एनिवर्सरी के इस ख़ास मौके पर जानिए उनको थोड़ा और करीब से…
नाना से फ़िदा हुसैन से विरासत में मिली शायरी
हसरत जयपुरी का जन्म 15 अप्रैल, 1922 को राजस्थान के जयपुर में हुआ था। उनका असल नाम इकबाल हुसैन था, लेकिन उन्हें प्रसिद्धि हरसत जयपुरी नाम से मिलीं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी में जयपुर में ही हुई थी, इसके बाद उन्होंने अपने नाना से उर्दू और पर्शियन की तालीम ली। हसरत को शायरी विरासत में मिली थी। उनके नाना फ़िदा हुसैन अपने जमाने के मशहूर शायरों में से एक थे।
हसरत जयपुरी के बारे में कहा जाता है कि वे अपने गानों में रात को औरत बना देते और फिर उस पर सितारे भी लपेट देते थे। हिंदी फिल्मों में टाइटल साॅन्ग लिखना सबसे कठिन माना जाता है और हसरत साहब फिल्मों के टाइटल साॅन्ग लिखने में मास्टर माने जाते थे। उन्होंने इस मुश्किल काम को इस अंदाज में अंजाम दिया कि फिर तो एक धारणा सी बन गई थी कि हसरत जिस फिल्म का टाइटल साॅन्ग लिखेंगे उसका हिट होना तय है। उनके ऐसे गीतों का लंबा सिलसिला चला था, जिसमें ‘दीवाना मुझको लोग कहें दीवाना’, ‘दिल एक मंदिर है दिल एक मंदिर’, ‘रात और दिन दिया जले’, ‘रात और दिन’, ‘एक घर बनाऊंगा तेरे आंगन के सामने’, ‘एन ईवनिंग इन पेरिस’ जैसे कई टाइटल साॅन्ग शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने ही लिखे थे।
जो शब्द कहीं अस्तित्व में नहीं थे उन्हें भी गीतों में पिरोया
हसरत ने जो शब्द लिखे वो तब तक कहीं अस्तित्व में नहीं थे, उन्हें भी गीतों में पिरोकर न सिर्फ उन्हें नए अर्थ दिए बल्कि उनमें मिठास घोलने का काम किया। उन्हीं में से एक गीत है ‘रम्मैया वस्तावैया।’ यह बड़ा हिट गीत साबित हुआ और कुछ साल पहले इस टाइटल से बाॅलीवुड में एक फिल्म भी बनी है। फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ का टाइटल साॅन्ग हसरत के हाथ नहीं लगा, लेकिन इस फिल्म का पाॅपुलर गीत ‘सुन साहिबा सुन’ उन्होंने ही लिखा था। इसके करीब दस साल बाद उनके पास टाइटल साॅन्ग लिखने का मौका आया और फिल्म हिना के लिए उन्होंने टाइटल साॅन्ग ‘मैं हूं खुशरंग हीना’ लिखा।
‘बहारों फूल बरसाओ’ के लिए मिला था फिल्म-फेयर
‘बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है’ गाने के लिए हसरत जयपुरी साहब को वर्ष 1966 में ‘श्रेष्ठ गीतकार’ का फिल्म फेयर अवाॅर्ड मिला था। अपने 40 साल के फिल्मी कॅरियर में उन्होंने करीब 350 फिल्मों के लिए 1200 से ज्यादा गीत लिखे। इस दौरान हसरत के हिस्से में दो बार अवाॅर्ड के तौर पर फिल्म फेयर आया। जब तक घर वालों का दिया नाम इकबाल हुसैन उनके साथ जुड़ा रहा वे संघर्ष में जीवन बिताते रहे, लेकिन जब उन्होंने अपना नाम हसरत जयपुरी किया तो वे बहुत जल्दी प्रसिद्ध हो गए। हसरत साहब को फिल्मी गीतकार के रूप में पहचाना जाता है, लेकिन उन्होंने गैर फिल्मी शायरी भी की और किताबें भी लिखी जो उनकी फिल्मी शोहरत में कहीं धुंधली सी पड़ गयी थी।
शायरी करते-करते ऐसे पहुंचे बाॅलीवुड तक
हसरत जयपुरी की पढ़ाई जयपुर शहर में हुई थी। वो जवान होने से पहले ही शायरी करने लग गए थे, लेकिन उन्हें ये पता था कि शायरी से पेट पालना आसान नहीं है। मात्र 18 वर्ष की उम्र में वो रोजगार की तलाश में मुंबई जा पहुंचे थे। कुछ दिन एक कपड़ा मिल में काम किया, कुछ समय के लिए खिलौनों की फैक्ट्री में भी काम किया। ऐसे कुछ और छोटे-छोटे धंधे किये और आखिरकार बस कंडक्टर की नौकरी कर ली। हसरत जयपुरी शायरी तो करते ही थे, इसलिये वे मुशायरों में भी शामिल होने लगे। बहुत सरल भाषा में शायरी करने वाले हसरत को एक मुशायरे में पृथ्वीराज कपूर ने सुना था। इसके बाद उन्होंने हसरत को इप्टा के दफ्तर में बुलाया गया।
राजकपूर अपने निर्देशन में बन रही फिल्म ‘बरसात’ के लिए गीतकार की तलाश में थे। शैलेंद्र को वे इप्टा के समारोहों में सुन चुके थे। राजकपूर ने हसरत से भी उनका कलाम सुना और फिर शंकर, जयकिशन, शैलेंद्र, हसरत और राजकपूर की एक टीम बन गयी थी। राजकपूर के निर्देशन में वर्ष 1949 में बनी पहली फिल्म ‘बरसात’ से शुरुआत कर इस टीम ने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक यादगार गीत दिये। इसी फिल्म के लिए हसरत साहब ने अपना पहला फिल्मी गीत ‘जिया बेकरार है छाई बहार है’ लिखा।
‘तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे’- हसरत जयपुरी
हसरत जयपुरी साहब अपने टीम साथी शैलेंद्र और जयकिशन की मौत के बाद बहुत अकेलापन महसूस करने लगे थे। राज कपूर के निधन के बाद तो उनकी हालात बिना परों के परिंदे के समान हो गयी थी। 17 सितम्बर, 1999 को अपनी मौत से पहले हसरत साहब ने कई साल तक गुमनामी में जीवन बिताया था। वर्ष 1970 में आई फिल्म ‘पगला कहीं का’ में हसरत जयपुरी ने एक गीत लिखा जो हमें हमेशा उनकी याद दिलाता रहेगा। यह गीत है ‘तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे।’