
रायपुर :- NHMMI Narayana Hospital रायपुर के लालपुर स्थित NHMMI नारायणा हॉस्पिटल में एक घातक कैंसर बीमारी को हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने इलाज करके एक नया मुकाम हासिल किया है आपको बता दें कि यह बीमारी का छत्तीसगढ़ में पहला केस मिला है ऐसी बीमारी को NHMMI नारायणा हॉस्पिटल के डॉक्टरों के टीम ने सफल ऑपरेशन कर एक मुकाम हासिल कर दिखाया है
NHMMI Narayana Hospital आपको बता दे की भोजन नली (वह नली जो गले को पेट से जोड़ती है) और श्वासनली अलग-अलग होती हैं, ट्रेकोओसोफेगल फिस्टुला (टीईएफ) एक विकार है जहां यह दोनों ट्यूब आपस में जुड़ जातीं हैं । परिणामस्वरूप, खाना या पानी फेफड़ों (एस्पिरेशन) में जा सकता है और वहां के कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। यह नुकसान कभी-कभी गंभीर भी हो जाता है और निमोनिया का खतरा भी बन सकता है।
ट्रेकिओसोफेगल फिस्टुला के इलाज के सामान्य तरीके एसोफागल स्टेंट, ट्रायकेल स्टेंट और सर्जरी है। लेकिन इस कैंसर सर्वाइवर के मामले में, 6 से 7 मिमी फिस्टुला सर्जरी के क्षेत्र (एनास्टोमोटिक साइट) के बहुत करीब था। इन जटिलताओं के कारणवश सामान्य उपचार तकनीकों से इलाज संभव नहीं था, इसलिए, एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेलिटी हॉस्पिटल, लालपुर, रायपुर में डॉक्टरों की टीम ने रोगी को एक अनोखे तकनीक के साथ उपचार का फैसला किया।
एएसडी ऑक्लुडर डिवाइस तकनीक का उपयोग करके फिस्टुला को बंद कर दिया गया था, जिसके लिए एक मल्टी-स्पैशलिटी टीम की आवश्यकता थी। डॉ एस. एस. पाढी (सीनियर कंसल्टेंट – कार्डियोलॉजी), डॉ अनुपम महापात्रा (सीनियर कंसल्टेंट – गैस्ट्रोएंटरोलॉजी), डॉ दीपेश मस्के (कंसल्टेंट – पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन), डॉ प्रदीप शर्मा (एचओडी क्रिटिकल केयर) और डॉ अरुण अंडप्पन (सीनियर एनेस्थिसियोलॉजिस्ट) ने प्रक्रिया को सफल बनाया है।
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डॉ अनुपम महापात्रा बताते हैं,
NHMMI Narayana Hospital रोगी एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, लालपुर, रायपुर में गंभीर खांसी, बुखार और ऑक्सीजन स्तर में गिरावट की शिकायत के साथ आया था, जो सामान्य दवाओं के बाद भी लगातार बना रहा। सीटी स्कैन से ट्रेकिओसोफेगल फिस्टुला का पता लगा और यूजीआई एंडोस्कोपी एवं ब्रोंकोस्कोपी से फिस्टुला के स्थान और आकार की पुष्टि हुई।”
डॉ. एस.एस. पाढी कहते हैं,
निष्कर्षों को देखते हुए, हमने प्रक्रिया को कम चीरे वाली रखने और सर्जिकल जटिलताओं से बचने के लिए एएसडी ऑक्लडर डिवाइस को चुनने का फैसला किया, जो उस स्थिति के लिए एक नया और दुर्लभ निर्णय था जहां बहुत कम विकल्प उपलब्ध थे। भारत और दुनिया ने ऐसे कुछ ही मामले देखे हैं।
डॉ. दीपेश मस्के कहते हैं
यह एक दुर्लभ मामला था और संभवत: मध्य भारत में पहला केस था जहां एएसडी ऑक्लूडर डिवाइस एक ट्रेकोओसोफेगल फिस्टुला के इलाज़ के लिए इस्तेमाल किया था। ऑपरेशन के चार दिनों के भीतर ही मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। वह ठीक है और वह सामान्य खाने-पीने की भी अनुमति है।
नवीन शर्मा (फैसिलिटी डायरेकटर, एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पैशलिटी हॉस्पिटल, लालपुर, रायपुर) ने डॉक्टरों की टीम को प्रोत्साहित करते हुए कहा, “हमारी पहल हमेशा अनूठी रही हैं और हमारे डॉक्टर मरीजों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए अपने दृष्टिकोण में कुशल और अद्वितीय रहे हैं।