
बिलासपुर: राजधानी रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर का नाम शायद ही कोई जानता हो, लेकिन उनकी हिम्मत ने पूरे प्रदेश को हिला दिया। समाज कल्याण विभाग में 2008 से 2016 तक संविदा कर्मचारी रहे कुंदन ने जब नियमितीकरण के लिए आवेदन किया, तब उन्हें पता चला कि वे पहले से ही सहायक वर्ग-2 पद पर पदस्थ दिखाए गए हैं और 2012 से उनके नाम से वेतन भी निकाला जा रहा है।

हैरान कुंदन ने आरटीआइ लगाई तो चौंकाने वाला सच सामने आया कि उनके अलावा 14 और लोगों के नाम पर भी फर्जी नियुक्तियां दिखाई गईं और करोड़ों रुपये का वेतन आहरित किया गया। यहीं से शुरू हुई उनकी जंग ने धीरे-धीरे स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) और फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (पीआरआरसी) में हुए 1,000 करोड़ से ज्यादा के घोटाले का राजफाश कर दिया।
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आरटीआइ, धमकियां, नौकरी छूटना, परिवार पर दबाव, ये सब सहते हुए उन्होंने जनहित याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने इसे गंभीर मानते हुए सीबीआइ जांच के आदेश दिए हैं, क्योंकि इस मामले में कई बड़े अफसरों की संलिप्तता पाई गई है।
आरटीआइ से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का सफर
सच सामने आने के बाद कुंदन ने जनहित याचिका दायर की। कोर्ट ने मामले की गंभीरता देखते हुए कहा कि यह सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि जनहित का मामला है। 30 जनवरी 2020 को हाई कोर्ट ने सीबीआइ जांच का आदेश दिया, जिसे आइएएस बीएल अग्रवाल व सतीश पांडेय समेत अन्य अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी। मामला लंबा खिंचा। तत्कालीन मुख्य सचिव विवेक ढांड व आइएएस एमके राउत ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया है।
इन पर संलिप्तता के आरोप
2004 में छत्तीसगढ़ सरकार ने दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य दिव्यांगों को तकनीकी और प्रशिक्षण सहायता प्रदान करना था। 2012 में इसी के अंतर्गत फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (पीआरआरसी) की स्थापना की गई, जिसका कार्य दिव्यांगों को कृत्रिम अंग और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना था, लेकिन सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत प्राप्त दस्तावेजों से यह स्पष्ट हुआ कि ये संस्थाएं केवल कागजों पर ही सक्रिय थीं और सरकारी फंड का दुरुपयोग किया जा रहा था। भ्रष्टाचार के इस केस में रिटायर्ड आइएएस विवेक ढांड, एमके राउत, आलोक शुक्ला, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल, सतीश पांडे, पीपी श्रोती समेत अन्य आरोपित हैं।
नौकरी गई, हौसला नहीं टूटा, वकील देवर्षि का अनोखा साथ
कुंदन ने बताया कि याचिका लगाने के बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। पिता हरि सिंह ठाकुर और अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने उनका मनोबल बढ़ाया। देवर्षि ने बिना फीस लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। उन्होंने कभी फीस नहीं ली। खुद खर्च उठाया।
पिता की आखिरी सांस और जीत का दिन
याचिकाकर्ता कुंदन बताते हैं कि उनके पिता हमेशा कहते थे, सच परेशान हो सकता है, लेकिन जीत उसी की होगी। केस के फैसले वाले दिन बुधवार को ही उनके 98 वर्षीय पिता ने अंतिम सांस ली।