छत्तीसगढ़

तमोर रेंज में है बालमदेव का प्राचीन किला, चौकोर ईंटों के साथ लंबी चारदीवारी व पत्थर की बॉवली, वन विभाग कर रहा है यह तैयारी..

सूरजपुर जिला मुख्यालय से 65 किमी दूर ओड़गी क्षेत्र में पुतकी गांव के बालमगढ़ पहाड़ पर वन विभाग को पुरानी ईंटों से निर्मित चारदीवारी व एक प्राचीन बॉवली मिली है। ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार आसपास के क्षेत्र में यह किवदंती चली आ रही है कि यह क्षेत्र बालमराजा के आधिपत्य में था, और यहां पर उन्होने अपने किले का निर्माण करते हुए अपना साम्राज्य स्थापित किया था। तमोर रेंज का क्षेत्र प्राकृतिक तौर पर बेहद खूबसूरत है, जहां कई प्रकार के वन्यजीव के साथ दुर्लभ औषधीय पौधे भी मिलते है। अब इस प्राचीन भग्नावशेष के बाद वनविभाग इसे पर्यटन के तौर पर भी विकसित करने की योजना बना रहा है।

चारदीवारी से निकली ईंट
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार सूरजपुर जिले का प्रतापपुर, भैयाथान व ओड़गी का क्षेत्र प्राचीन समय से ही किसी न किसी राजा, या विशेष जनजाति के आधिपत्य वाले प्रमुख गढ़ के तौर पर विख्यात रहा है। समय-समय पर अलग-अलग क्षेत्र में राजाओं ने अपना आधिपत्य कायम रखते हुए अपना साम्राज्य विकसित किया था। इन्ही धारणाओं के अनुसार प्रतापपुर का रमकोला क्षेत्र व इसके आसपास के इलाके में गौड़ राजा के लंबे अंतराल तक वर्चस्व की मान्यता चली आ रही है। मान्यता है कि गौड़ राजा रमकोला व आसपास क्षेत्र की पहाड़ियों पर अपने सुरक्षित रहने के स्थान का निर्माण करते हुए समुदाय के साथ रहा करते थे और एक बड़े भू-भाग में इनका आधिपत्य था। इसी मान्यता के साथ एक मान्यता यह भी है कि यह क्षेत्र सीधी जिले के क्षत्रिय राजपरिवार बालमराजा से जुड़ा हुआ है, जिन्होनें ओड़गी के साथ भैयाथान के कई क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य किया था। इनका एक किला कुदरगढ़ पहाड़ पर भी स्थित है। अब इनके वंशज सीधी जिले में ही निवास करते है। तमोर रेंज के इस हिस्से में भी बालमराजा को लेकर किवदंती वर्षों से चली आ रही है। उनके नाम पर पुतकी क्षेत्र का पहाड़ भी बालम पहाड़ के नाम से विख्यात है, लेकिन समय के साथ-साथ यह मान्यता इसी क्षेत्र में सिमटकर रह गई। चूंकि यह क्षेत्र अभ्यारण क्षेत्र से काफी अंदर के हिस्से में है, इसलिए इसकी जानकारी कभी सार्वजनिक नहीं हो पाई। यह मामला एक माह पूर्व उस समय प्रकाश में आया, जब वन विभाग को इस क्षेत्र में निर्माण कार्य के दौरान कुछ प्राचीन भग्नावशेष मिले, इन अवशेषो में एक प्राचीन बॉवली और काफी दूर तक फैली चारदीवारी है,जो कि चौकोर इंटों से निर्मित है। इस स्थल को लेकर पुराने समय से आसपास के कई गांव में धार्मिक मान्यतानुसार पूजा अर्चना चली आ रही है।

मामला ऐसे आया सामने

तमोर रेंज तमोर पिंगला अभ्यारण क्षेत्र का एक हिस्सा है, जो प्रतापपुर विकासखंड के जजावल क्षेत्र से आरंभ होकर ओड़गी के बड़े हिस्से में फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल 206 वर्ग किमी का है। यहां पर पदस्थ रेंजर एसपी सोनी ने एक चर्चा में बताया कि पुतकी के समीप बालम पहाड़ के ऊपर जाने पर यहां की प्राकृतिक छटां बेहद खूबसूरत है। पहाड़ के ऊपर वॉच टॉवर बनाने की मंशा से जब एक माह पूर्व इस पहाड़ी हिस्से में रास्ता बनाने का प्रयास किया गया तो कुछ ऊंचाई पर चौकोर ईंटे मिलनी शुरू हो गई। बाद में धीरे-धीरे ऊंचाई पर जाने पर इन्हीं ईंटों से बनी चारदीवारी के साथ पत्थरों से निर्मित बॉवली भी मिली। उन्होनें बताया कि ग्रामीणों के अनुसार वे लोग यहां पर बालमदेवता की पूजा करते है, और यह स्थान भी बालमगढ़ के नाम से आसपास क्षेत्र में विख्यात है। उन्होंने बताया कि वे इसकी जानकारी इसकी जानकारी होने के बाद अभ्यारण के तमोर रेजर एसपी सोनी ने भी क्षेत्र का भ्रमण किया और उच्चधिकारियों को इसकी जानकारी दी है। अब जल्द ही इसको पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित करने की योजना बनाई जाएगी।

कहां है यह क्षेत्र

बालमगढ़ पहाड़ में प्राचीन ढोढ़ी
यह स्थल तमोर पिंगला अभ्यारण क्षेत्र के तमोर रेंज में आता है। मुख्यतः यह ओड़गी विकासखंड का हिस्सा है। इस क्षेत्र में प्रतापपुर व ओड़गी दोनों तरफ से पहुंचा जा सकता है।प्रतापपुर से इसका रास्ता जजावल होकर ओड़गी के चिकनी, मयूरधक्की होते हुए लांजीत से पहले पुतकी गांव की ओर से जाता है। प्रतापपुर से जजावल 22 किमी और यहां से पुतकी 20 किमी की दूरी पर है। ओड़गी की ओर से यहां लांजीत होकर पहुंचा जा सकता है। अभी इस क्षेत्र में तो आसानी से पहुंचा जा सकता है, लेकिन बरसात के दिनों में यहां पहुंचने से पहले सुअरभुजा, किरकिला, कोइलहवा और बबनधारा नाला पड़ता है, जिसमें पुलिया निर्माण की जरूरत है, अगर इन चारों नाले पर पुलिया के निर्माण हो जाता है तो यह जगह बारहमासी आवागमन के लिए आरंभ हो सकता है। रेंजर एसपी सोनी ने बताया कि पुतकी से बालमपहाड़ के ऊपर लगभग 3 किमी का रास्ता पूरी तरह से तैयार किया जा रहा है, जिससे चारपहिया वाहन आसानी से ऊपर के हिस्से तक जा सके। उन्होनें बताया कि आगामी 2-3 माह में वॉच टॉवर का भी निर्माण पूर्ण करने की योजना है, जिससे इस वन से आच्छादित क्षेत्र के बड़े हिस्से को आसानी से देखा जा सकता है। उन्होनें बताया कि वॉच टॉवर के नीचे विश्राम के लिए भवन के निर्माण की भी कार्ययोजना है।

परंपरागत तौर पर हो रही है पूजा

तमोर रेंज में पुतकी गांव के निवासी 65 वर्षीय अजीत गुर्जर जो बालम देवता स्थल के मुख्य पुजारी है। उन्होनें इस स्थान के बारे बताया कि यह स्थान काफी प्राचीन है। उन्होनें बताया कि आसपास क्षेत्र में निवास करने वाले ज्यादातर लोग इस क्षेत्र के मूल निवासी नहीं है, अधिकांश परिवार रिहंद बांध के डूबान क्षेत्र से विस्थापित होकर यहां आकर बस गए थे। उस दौरान उनके बुजुर्गो को कुछ स्थानीय ग्रामीणों ने बालमदेवता के बारे में जानकारी दी थी। अब देवता को पहाड़ से नीचे लाकर स्थापित कर दिया गया है, जिसकी पूजा वे अपने परिवार के बुजुर्ग के बाद परंपरागत तौर पर कराते आ रहे है। उन्होनें बताया कि आसपास क्षेत्र में इस स्थान का धार्मिक महत्त्व काफी है और प्रत्येक वर्ष नवरात्र व बैशाख में यहां पूजा होती है। इस वर्ष भी बैशाख में पहाड़ के ऊपर धार्मिक मान्यता के अनुरूप ग्रामीणों ने जौ उगाकर पूजा अर्चना की है

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