Death Anniversary of Meena Kumari: आज हम बात कर रहे हैं ‘बैजू बावरा’ की गौरी, ‘परिणीता’ की ललिता, ‘दो बीघा ज़मीन’ की ठकुराईन, ‘चांदनी चौक’ की ज़रीना बेगम, ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ की करुणा, ‘कोहिनूर’ की राजकुमारी चंद्रमुखी, ‘साहब बीवी और ग़ुलाम’ की छोटी बहू, ‘दिल एक मंदिर की सीता’, ‘नूरजहां’ की मेहरुन्निसा और ‘पाकीज़ा’ की नर्गिस और साहिबजान की.
एक ऐसी अदाकारा की दास्तान जिनकी आवाज़ की भीनी-भीनी ख़ुश्बू से सुनने वाला मदहोश हो जाता था. जिनकी अदाकारी की गंभीरता के सामने बड़े से बड़ा अदाकार अपने डायलॉग भूल जाता था. जिनका ख़ानदानी त्अल्लुक़ गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर से जुड़ता था.
मीना कुमारी का रविन्द्र नाथ टैगोर से था इस तरह का रिश्ता
रविन्द्र नाथ टैगोर की भतीजी की बेटी बंगाली स्टेज अदाकारा प्रभावती ने पंजाबी संगीतकार अलीबख़्श से इक़बाल बानो बनकर बंबई में निकाह किया तब दोनों अंजान कलाकारों को वहाँ कोई काम नही मिल रहा था. दोनों रंगमंच के कलाकार थे. उनकी तीन बेटियां हुईं. मीना कुमारी की बड़ी बहन खुर्शीद जुनियर और छोटी बहन मधु (बेबी माधुरी) भी फिल्म अभिनेत्री थीं. मतलब मंझली का नाम था ‘महजबीं’. हालात ने महजबीं को सिर्फ़ 4 साल की उम्र में बाल कलाकार के रूप में कैमरे के सामने ला खड़ा किया. फिल्म थी ‘लेदर फेस’ और निर्देशक थे विजय भट्ट. पहले दिन 25 रुपये मिले तब जाकर लंबे दिनों बाद घर में चुल्हा जला. एक दिन की पकी रोटियां तीन-तीन दिनों तक खाई जातीं थीं.
महजबीन बानो से ऐसे बन गईं मीना कुमारी
मीना कुमारी ने विजय भट्ट की कई फ़िल्मों में काम किया. विजय भट्ट को महजबीन बानो नाम बहुत लंबा लगता था. फिल्म ‘एक ही भूल’ की शूटिंग के दौरान 1940 में विजय भट्ट ने उन्हें बेबी मीना कहकर पुकारना शुरू किया. यही नाम टीनएज तक आते-आते मीना कुमारी बन गया.
कमाल अमरोही से शादी की वजह से अपने बाप से दूर गो गईं मीना
बहरहाल महजबीं बड़ी हुईं तो मीना कुमारी बन बैठीं और कमाल अमरोही से कमाल की मुहब्बत कर बैठीं. उनके लिए कमाल अमरोही ‘चंदन’ हो गए और कमाल अमरोही के लिए मीना कुमारी ‘मंजू’. पहले से शादीशुदा कमाल एक बाकमाल निर्देशक थे. ‘महल’ से उनकी कामयाबी का महल खड़ा हो चुका था. उन्हें मीना कुमारी की मुहब्बत का एह्तराम करना पड़ा और दोनों ने चुपके से शादी कर ली. मीना के वालिद अलीबख़्श इस शादी के सख़्त के ख़िलाफ़ थे.
उनके लिए मीना सोने का अण्डा देने वाली मुर्ग़ी थीं. उन्होंने कमाल से तलाक़ लेने का दबाव देना शुरू कर दिया. उस समय अलीबख़्श चाहते थे कि मीना कुमारी महबूब ख़ान की फिल्म ‘अमर’ में काम करें जबकि मीना कुमारी का मन अटका था कमाल अमरोही की फिल्म ‘दायरा’ में. इसलिए महबूब ख़ान की फिल्म ‘अमर’ छोड़ आईं, जिससे नाराज़ होकर बाप ने मीना के लिए अपने घर के दरवाज़े हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिये. उसके बाद पहली बार वो अपने शौहर के घर पहुंची. कमाल ने मीना को गले से लगा लिया. मीना ने अपनी कार बाप को भेजवा दी ताकि उन्हें आने-जाने में तकलीफ़ न पहुंचे.
मीना कुमारी के शोहरत की वजह से पति कमाल अमरोही से रिश्ते हो गए खराब
‘बैजू बावरा’ के बाद मीना कुमारी फिल्म नगरी की सबसे बडी अदाकारा बन बैठीं थीं. उनके आगे फिल्मों की झड़ी लग गई और दौलत की बरसात होने लगी. बाक़र अली (कमाल अमरोही के सेक्रेटरी) और कमाल अमरोही अपनी फिल्में संभालने से ज़्यादा मीना कुमारी का हिसाब किताब संभालने में मसरूफ़ रहने लगे. जब मीना का क़द कमाल से बड़ा होने लगा तो दोनों में अना का टकराव शुरू हो गया. इस बीच हरीफ़ो और हासिदों ने इस शीत युद्ध को ख़ूब हवा दी. इन्हीं दिनों गुरुदत्त ने मीना कुमारी को ‘साहब बीवी और ग़ुलाम’ में काम करने का न्योता भेजा. कमाल नहीं चाहते थे कि मीना कुमारी उस फिल्म का हिस्सा बनें लेकिन मीना ने हां कर दिया और फिल्म का हिस्सा बन गईं.
‘साहब बीवी और ग़ुलाम’ ने कई रिकार्ड ध्वस्त किये और मीना कुमारी घर-घर में छोटी बहू के रुप में जानी जानें लगीं. इस फिल्म के लिए मीना कुमारी को लगातार तीसरी बार ‘फिल्म फेयर अवार्ड’ मिला जो इतिहास की पहली घटना थी. फिल्म को बर्लिन फिल्म फेस्टिवल के लिए भी चुना गया जहाँ मीना कुमारी को प्रतिनिधि के तौर पर चुना गया. उसके बाद तो मीना कुमारी ने इतिहास के कई पन्ने अपने नाम किए –