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शिक्षित परिवार ने लिया मृत्युभोज बंद करने का निर्णय”* मिल रही है सराहना

रिपोर्टर - नमनश्री वर्मा आरंग

आरंग – जनपद पंचायत आरंग के ग्राम धौराभाठा में मृत्यूभोज एक सामाजिक बुराई है, इस सच को अंगीकार करने के लिए दिल को मजबूत लोकलाज को दरकिनार कर पहल जरूरी है किसी भी कुरूति एवम बुराई को छोड़ने की शुरुआत खुद करें तो समाज को भी संबल प्रदान कर जाती है ऐसे ही एक पहल आरंग क्षेत्र के ग्राम पंचायत धौराभाठा के निवासी संतराम बर्मा, लखनलाल बर्मा , संतूराम बर्मा, शत्रुहन लाल बर्मा एवम पूरे बर्मन परिवार ने की है।

इन्होंने अपने मां के स्वर्गवास के बाद समाज हित में मृत्यूभोज बंद करने का निर्णय लिया जो इस सामाजिक कुरीति को खत्म करने की मुहिम में कारगार पहल है। गांव के वरिष्ट नागरिक गण थनवार डेकर, साधुराम डेकर, मन्नू बंजारे व धरम दस चतुर्वेदी ने कहा की ऐसा साहसिक निर्णय लेने से दूसरे लोगों का हौसला बढ़ेगा और ऐसे ही सामाजिक बुराई से समाज मुक्त होगा…….

*”मृत्यु भोज अभिशाप”*

जिस आंगन में पुत्र शोक से बिलख रही माता, वहा पहुंचकर स्वाद जीभ का तुमको कैसे भाता।

पति के चीर वियोग में व्याकुल युवती विधवा रोती, बड़े चाव से पतंग खाते तुम्हे पीड़ा नहीं होती मरने वालो के प्रति अपना सद व्यवहार निभाओ, धर्म यही कहता है बंधुओ मृतुभोज मत खाओ। चला गया संसार छोड़कर जिसका पालन हारा,पड़ा चेतना इन जन्हा पर वज्र पात दे मारा। खुद भुखे रहकर भी परिजन तेरहवा खिलाते अंधी परंपरा के पीछे जीते जी मर जाते। इस कुरीति के उन्मूलन का साहस कार दिखलाओ धर्म यही कहता है बंधुओ मृत्यु भोज मत खाओ।

*स्व. दुखदईया बर्मा दिवंगत आत्मा के अंतिम वचन*…मेरी मृत्यु भोज नहीं करें आशा है की मेरे परिवारजन मेरी अंतिम इच्छा पूरी करेंगे।

*• स्व. दुखदईया बर्मा*

हम आपके अंतिम इच्छा हेतु संकल्पित है– *परिवारजन*

किसी भी शास्त्र में मृत्यूभोज का उल्लेख नहीं है, न इसे पुण्य का कार्य बताया गया है यह सिर्फ रूढ़िवादी लोगों द्वारा मौखिक रूप से प्रचलित करके स्थापित की गई कुप्रथा है। इसीलिए जाकरूक लोगों द्वारा की गई इस पहल से सामाजिक कुरीति एवम बुराई को खत्म किया जा सकता है”

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