राजिम। लोककला मंच रंग छत्तीसा में छत्तीसगढ़ की छत्तीस लोक गीतों को समाहित किया गया है जिसमें सुआ, करमा, ददरिया, राउतनाचा और बांस गीत जैसे प्रमुख पारंपरिक गीतों की प्रस्तुति दी जाती है। 8 साल की उम्र से नाचा में हबीब तनवीर के साथ में कार्य कर रही पूनम तिवारी ने मीडिया सेंटर में अपने अनुभव बताते हुए कहा कि प्रसिद्ध नाटक बहादुर कलारिन और चरणदास चोर में रानी की भूमिका में रही है।
नाटक और गायन में अगर किसी एक चुनना पड़ेगा तो आप किसे चुनेंगे प्रश्न पर कहती है कि नाचा शैली को ही चयन करूंगी क्योंकि इस शैली की प्रस्तुति पूरे मंच पर दी जाती है जबकि गायन कला में एक जगह खड़े होकर प्रस्तुति दी जाती है। इसकी प्रेरणा मुझे मां से मिली है वे भी बहुत बड़ी नाचा की कलाकार थी। जब मैं छोटी थी तब मैं मां के साथ कार्यक्रम में जाती थी। इस बार माघी पुन्नी मेला में बहुत कुछ नयापन देखने को मिला। पहले जब हम यहां आते थे तो दर्शक दिखाई नहीं देते थे। मंच से दर्शक की दूरी बहुत अधिक हो जाती थी। अब हम दर्शक को देख सकते है और दर्शक भी हमें एलईडी के माध्यम से स्पष्ट देख सकते है और कार्यक्रम का आनंद उठा सकते है। उनका सपना है कि लोकनाचा का यह सफर कभी बंद न हो मैं रहूं न रहूं।
लोकनाचा की विधा आगे बढ़ना चाहिए व लुप्त नहीं होनी चाहिए आने वाली पीढ़ी इसे जाने और सीखे। हम नये कलाकारों को प्रशिक्षित कर रहे है। सीखने के लिए रूची और लगन होना जरूरी है, लेकिन आज कल के कलाकारों में इसकी कमी दिखायी देती है। पहले पति और पुत्र के सहयोग से इस क्षेत्र में हम लगातार कार्य कर रहे थे लेकिन उनके जाने के बाद यह कार्य उनके दामाद संभाल रहे है। उनकी ईच्छा है कि छत्तीसगढ़ शासन की ओर से कलाकारों को जो पेंशन दिया जाता है वह 60 साल की जगह 35-40 वर्ष की उम्र में दिया जाना चाहिए। क्योंकि 60 साल के बाद उस पेंषन का कोई मतलब नहीं रह जाता। शासन के द्वारा कलाकारों के लिए ऐसी योजना बनाई जाए जिसमें पुरानी कला जीवित रहे।
आगे बताया कि हबीब तनवीर के साथ श्रीलंका, रांची, लंदन, पेरिस, रूस और रसिया गई है। दाऊ मंदारजी, शरदचंद सम्मान के साथ और कई सम्मान मंचों से मुझे प्राप्त है। मेरी टीम में कुल 40 सदस्य है, जिनका अपना अलग-अलग कार्य है।