
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चौथी बार उपचुनाव होने जा रहा है। दूसरी बार जोगी कांग्रेस की सीट के लिए कांग्रेस और भाजपा में भिड़ंत होगी। इससे पहले पूर्व सीएम अजीत जोगी के निधन के बाद मरवाही में चुनाव हुए थे। इस बार देवव्रत सिंह के निधन के बाद खैरागढ़ में चुनाव होना है। राज्य में अब तक 12 बार उपचुनाव हो चुके हैं। इसमें कोटा को छोड़ दें तो एक बार भी सत्ता पक्ष की हार नहीं हुई है।
2018 में एकतरफा जीत के बाद कांग्रेस ने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में जोरदार प्रदर्शन किया। भाजपा की तीनों उपचुनावों में हार हुई। हार-जीत का अंतर भी लगातार बढ़ा है। दंतेवाड़ा उपचुनाव में भाजपा 11331 वोटों से हारी। वहीं, चित्रकोट में 17853 और मरवाही में 36000 वोटों से हार हुई। विधानसभा चुनाव में खैरागढ़ में भाजपा के कोमल जंघेल सिर्फ 870 वोटों से हारे थे। कांग्रेस तीसरे नंबर पर थी।
इस बार भाजपा प्रभारियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर
इस बार भाजपा प्रभारियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। नवंबर, 2020 में मरवाही उपचुनाव के दौरान प्रभारियों की नियुक्ति नहीं हुई थी। चुनाव परिणाम आने के बाद डी. पुरंदेश्वरी को प्रभारी और नितिन नबीन को सह प्रभारी बनाया गया था। यही वजह है कि भाजपा नई रणनीति के साथ मैदान में उतरेगी। इस बार चुनाव संचालन की जिम्मेदारी प्रदेश उपाध्यक्ष खूबचंद पारख, मोतीलाल साहू व ओपी चौधरी को दी गई है।
पहले दो उपचुनाव मुख्यमंत्रियों के लिए
पहले दो उपचुनाव मुख्यमंत्रियों के लिए हुए थे। दरअसल, पहले दोनों सीएम यानी अजीत जोगी और डॉ. रमन सिंह जब सीएम बने, तब वे विधायक नहीं थे। जोगी के लिए तत्कालीन भाजपा विधायक रामदयाल उइके ने मरवाही सीट छोड़ी थी। वहीं, डॉ. रमन के लिए प्रदीप गांधी ने डोंगरगांव सीट छोड़ी थी।
कांग्रेस के पास ही रही शुक्ल की सीट
2006 में भाजपा की सरकार थी। उस समय पहले विधानसभा अध्यक्ष पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के निधन के बाद कोटा में उपचुनाव हुआ। इसमें कांग्रेस से डॉ. रेणु जोगी प्रत्याशी थीं। इस उपचुनाव में भाजपा की हार हुई। इसके बाद से इस सीट पर डॉ. रेणु ही जीत रही हैं। 2018 में वे जोगी कांग्रेस से चुनाव लड़ी थीं।