छत्तीसगढ़ की संस्कृति में गहनों का विशेष महत्व है इन गहनों में रुपया, मोहर ,बंदा ,सुता को मूलभूत छत्तीसगढ़ी भाषा और गोंडी भाषा के महत्व को उजागर किया है 15 फरवरी को ” छत्तीसगढ़ी प्राचीन गहना धरोहर दिवस ” एवं” विश्व प्राचीन गहना धरोहर दिवस ” के रूप में मनाने का संकल्प किया है साथ ही यूनेस्को, भारत सरकार एवं छत्तीसगढ़ सरकार से भी छत्तीसगढ़ प्राचीन गहना धरोहर दिवस के रूप में मनाने की मांग की ताकि गहनों की प्राचीन संस्कृति विलुप्त ना हो और प्राचीन गहने संरक्षित रहे।
” सिक्को की मेटालर्जी” से पता चलता है कि सहस्त्र शताब्दी में भारतीय सिक्के की परंपरा भारत में इंडो इस्लामिक शासन के साथ विकसित हुई । 15 वीं से 17 वीं शताब्दी में शाहजहां ,बाबर ,जहांगीर से सिक्कों का चलन आरम्भ हुआ। जिसमें सिक्के की एक फलक में राजा का नाम और जीत का विश्लेषण किया । सन् -1604 से सन् -1605 में मोहर के एक फलक में सियाराम के चित्र का उल्लेख तथा दुसरे फलक में पर्शिया भाषा में लिपि का उल्लेख अकबर के समकालीन मिलता है। “सहस्त्र शताब्दी” से चली आ रही अरबी और उर्दू के मोहर गहने के रूप में आज भी सोने में पुतरी या मोहर कहा जाता हैं । वहीं चांदी में रुपया ,बंधा के रूप में प्रचलित हैं। जिसे सुश्री शांता शर्मा ने गहनों को मूलभूत रूप छत्तीसगढ़ी गहने सिक्के के एक फलक में छत्तीसगढ़ी भाषा में “जय छत्तीसगढ़ महतारी” एवं छत्तीसगढ़ राज्य की मुख्य फसल धान की बाली को सम्मिलित किया है। सिक्के में 7 सितारों का विश्लेषण छत्तीसगढ़ राज्य की महान महिलाओं को समर्पित किया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के लिए सेवा दी है। जिनके नाम इस प्रकार से है :- 1.कौशल्या माता जी 2.कर्मा माता जी 3. मिनीमाता जी 4. अवंती बाई लोधी जी 5. रानी दुर्गावती जी 6. राजमोहिनी देवी जी 7.गायत्री देवी शर्मा जी ( सुश्री शांता शर्मा की मां श्री ) एवं छत्तीसगढ़ की विलुप्त होती संस्कृति को बचाने वाली उनकी स्वयं की संस्था का नाम “रूपाली महतारी गुड़ी बहुउद्देशीय संस्था भिलाई” सन 2023 लिखा हुआ उल्लेख है। (Chhattisgarh Mahatari’s service to Chhattisgarh’s)
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वहीं सिक्के के दूसरी फलक मैं छत्तीसगढ़ की प्राचीन साक्ष्य लिपि भाषा का संज्ञान हड़प्पा कालीन मोहनजोदड़ो से हुई है अब विलुप्त होने की कगार में है गोंडी भाषा के प्रचार प्रसार को महत्व को देखते हुए गोंडी भाषा का प्रयोग किया गया हैं। गोंडी लिपी में श्री विष्णु किरको पददा गांव खालेबेदी, जिला कोण्डागांव, बस्तर, द्वारा गोंडी भाषा की प्रमाणित “जय छत्तीसगढ़ महतारी” किया ।
छत्तीसगढ़ की मुख्य फसल धान की बाली का उल्लेख किया गया है। एवं 7 सितारों में छत्तीसगढ़ के सा महान पुरुष विभूतियों का विश्लेषण किया गया है। जो इस प्रकार से है 1.गुरु घासीदास बाबाजी 2.शहीद नारायण सिंह जी 3.गुंडाधुर जी, 4.पं. सुंदरलाल शर्मा जी 5.खूबचंद बघेल जी 6.ठाकुर प्यारेलाल 7. मदन लाल जी (सुश्री शांता शर्मा के पिता श्री)। सिक्के का व्यास 1.30 सेंटीमीटर का है। वहीं कतली मोहर 1 इंच लंबा और 1 इंच चौड़ा है। यह मोहर सोना, चांदी, एल्युमीनियम एवं तांबे में उपलब्ध है। ताकि समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग इसे पहन सके मोहर का डिजाइन सुश्री शांता शर्मा ने किया है इसे पैटर्न राइट कोलकाता से करवाया है।
“आजादी का अमृत महोत्सव एवं अपनी मां स्वर्गीय गायत्री देवी शर्मा के 75 वीं जन्मोंत्सव” के अवसर पर छत्तीसगढ़ वासियों को छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति को भेंट में दिया है । (Chhattisgarh Mahatari’s service to Chhattisgarh’s)
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सुश्री शान्ता शर्मा का संकल्प संस्कृति को पूर्ण रूप में स्थापित करने का है जो की यह सेवा मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती का विषय एवं आर्थिक अभाव के साथ था। इस छत्तीसगढ़ी गहने को स्थापित करने के लिए मैंने बहुत से लोगों से मिलकर चर्चा की किंतु किसी ने भी कोई सहयोग नहीं मिला। श्री ज्ञान गंगा ऊँ मूर्ति माला केंद्र उजाला भवन दुर्ग से श्री प्रभु दयाल उजाला जी नेे मेरे सपनों को साकार रूप दीया और सिक्कों की ढलाई करवाई। वृहद मात्रा में गहनो की छपाई की गयी है।, वहीं छत्तीसगढ़ में विलुप्त हो चुकी तिलरी या सुर्रा को भी पुनः स्थापित किया है।
गहने का लोकार्पण डॉ. मानसी गुलाटी जी (गुलाटी नर्सिंग होम, दुर्ग) संस्था संरक्षक “रूपाली महतारी गुड़ी बहुउद्देशीय संस्था” भिलाई एवं श्री मीर अली मीर जी केे कर कमलों से हुआ है। सुश्री शांता शर्मा जी नेे माननीय मुख्यमंत्री जी से विलुप्त होती गहनों की संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए चिन्हारी आयोग के गठन की मांग की साथ ही छत्तीसगढ़ की मुल भुत लुगरा अंडी को राजकीय साड़ी का दर्जा, एवं छत्तीसगढ़ के पारंपरिक गहनों को राजकीय गहनों का दर्जा देने की मांग की है गहनो को सम्मान मे भेंट देने की कडी में कवि श्री मीर अली मीर जी, डॉ मानसी गुलाटी जी प्रेस क्लब रायपुर , प्रिंट मीडिया टेलीकास्ट मीडिया के प्रतिनिधि को गहने भेंट दिये । सन् 18- 10 -2018 से, उपेक्षित होते गहनों को भेंट देने के क्रम की संख्या 25000 से अधिक हो चुकी है। जिसमें छत्तीसगढ़ के लिए विभिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठ काम करने वाले महिला, पुरुष ,युवाओं को भेंट में दे चुकी है उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ के गहने गहने नहीं जीवनदायिनी है । छत्तीसगढ़ के गहनों के प्रचार-प्रसार के लिए संस्कृतिक यात्रा पूर्ण छत्तीसगढ़ी अपनाव, नशा मुक्त छत्तीसगढ़ कुपोषण मुक्त छत्तीसगढ़ की मूल विषय को लेकरमें 18 जुन 2019से छत्तीसगढ़ की यात्रा आरम्भ की ।सुश्री शांता शर्मा का नाम 16 जनवरी 2023 को “गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड” में सम्मिलित हुआ है।
” आजादी का अमृत महोत्सव” एवं अपनी मां स्वर्गीय गायत्री देवी शर्मा के 75 वीं जन्मोंउत्सव के अवसर पर छत्तीसगढ़ महतारी एवं , छत्तीसगढ़ वासियों को छत्तीसगढ़ी गहने जो विलुप्त होती जा रही थी उन गहनों को मूल छत्तीसगढ़ी एवं गोंडी भाषा में पिरो कर मूल संस्कृति को भी भेंट दिए हैंं।
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