पूजा पाठ

सावन का प्रदोष व्रत,कब है जाने और नोट कर ले शुभ मुहूर्त की तिथि…और पूजा विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह में दो प्रदोष व्रत होते हैं। एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष में, लेकिन सावन के माह के प्रदोष व्रत का महत्व सबसे खास होता है। धार्मिक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से प्रदोष व्रत रखता है और भगवान शंकर की पूजा करता है

उसकी सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं। प्रदोष व्रत की पूजा शाम को प्रदोष काल में की जाती है, जिसकी वजह से इस बार सावन के पहले प्रदोष व्रत की सही तिथि को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि सावन का पहला प्रदोष व्रत 14 जुलाई, दिन शुक्रवार को रखा जा रहा है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि यह प्रदोष व्रत 15 जुलाई दिन शनिवार को रखा जाएगा। ऐसे में चलिए हम आपको बताते हैं सावन के पहले प्रदोष व्रत की सही तिथि पंचांग के अनुसार सावन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 14 जुलाई 2023 को रात 07 बजकर 17 मिनट से हो रही है। वहीं 15 जुलाई 2023 को रात 08 बजकर 32 मिनट पर इसका समापन होगा।

सावन प्रदोष व्रत 2023 पूजा मुहूर्त

जुलाई को ही पूजा का मुहूर्त प्राप्त हो रहा है। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रात में 07 बजकर 21 मिनट से रात 09 बजकर 24 मिनट तक है। इसलिए कुछ लोग 14 जुलाई को ही प्रदोष व्रत रख रहे हैं।

वहीं प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की पूजा की जाती है और 15 जुलाई को त्रयोदशी तिथि का समापन प्रदोष काल के बाद यानी रात 08 बजकर 32 मिनट पर हो रहा है। इसलिए कुछ लोग 15 जुलाई को प्रदोष व्रत रख रहे हैं। इस दिन शनिवार है। ऐसे में इस प्रदोष व्रत का महत्व भी और अधिक बढ़ गया है। साथ ही इस दिन चंद्रमा वृष राशि में उच्च के रहेंगे और मृगशिरा नक्षत्र का शुभ प्रभाव रहेगा। ऐसे में 15 जुलाई को यह व्रत करना उत्तम माना जा रहा।

सावन प्रदोष व्रत 2023 पूजा विधि

सावन प्रदोष व्रत के दिन प्रातः काल जल्दी उठें और स्नान आदि करके पूजा के लिए साफ वस्त्र पहन लें।
उसके बाद पूजा घर में दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें।

पूरे दिन व्रत रखते हुए प्रदोष काल में शिव जी की पूजा और उपासना करें।

फिर शाम के समय प्रदोष काल में पूजा के दौरान दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक करें।
शिव जी को भांग, धतूरा, बेलपत्र फूल और नैवेद्य शिवलिंग पर अर्पित करें। इसके बाद भगवान शिव की प्रतिमा के पास धूप-दीप जला कर प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। अंत में शिवजी की आरती करके पूजा समाप्त करें।

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