रायपुर, छत्तीसगढ़, 12 अगस्त, 2021: अंगदान के महत्व को प्रकाश में लाने और साहसी डोनर्स (दाताओं) और रेसिपिएंट्स (प्राप्तिकर्ताओं) का जश्न मनाने के लिए, आज एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस सम्मान समारोह की मेजबानी मुंबई में इन लोगों का लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाले डॉ स्वप्निल शर्मा और अन्य लिवर विशेषज्ञों ने की। लिवर प्राप्त करने वाले रायपुर के पीयूष कुंडू (2.5 वर्ष) और उनकी डोनर लक्ष्मी सरकार, बिलासपुर के सिद्धार्थ यादव (11 वर्ष) और उनके डोनर पूर्णिमा यादव, रानीगांव के तन्मय देवांगन (15 वर्ष) और उनके डोनर तरुण देवांगन लिवर विशेषज्ञों की इस पहल का समर्थन करने के लिए अपने परिवार के साथ आए। यह पहल फोर्टिस हॉस्पिटल अस्पताल, मुलुंड, मुंबई के सलाहकार-लिवर प्रत्यारोपण और एचपीबी सर्जरी डॉ स्वप्निल शर्मा के नेतृत्व में विश्व अंग दान दिवस 2021 की पूर्व संध्या पर आयोजित की गई थी।
इस पहल का उद्देश्य उन प्राप्तकर्ताओं की दुर्दशा को उजागर करना था जिन्हें जीवन रक्षक अंग प्रत्यारोपण की जरूरत थी। इसका मकसद उन लोगों की परेशानी को भी सामने लाना था जो पिछले 16 महीनों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने में सक्षम नहीं थे। आज अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रतीक्षा सूची में लोगों की संख्या काफी बढ़ गई है, पर डोनर के परिवारों में भय पैदा हो गया है जिससे जीवित और मृत लोगों दोनों में अंगदान करने में लगातार गिरावट आ रही है।फोर्टिस हॉस्पिटल, मुलुंड, मुंबई के सलाहकार-लिवर ट्रांसप्लां1ट और एचपीबी सर्जरी डॉ स्वप्निल शर्मा ने इस अवसर पर कहा, “भारत में, अंग दान के नेककार्य में काफी प्रगति हुई है, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इस प्रयास को भारी झटका लगा है। सरकारी निकायों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के साथ हम अधिक से अधिक परिवारों को इस नेक काम का समर्थन करने के लिए आगे आते देख रहे हैं।
हालांकि, महामारी के दौरान मृत शरीर के डोनेशन की संख्या में काफी गिरावट आई है। इससे जीवित-डोनर लिवर ट्रांसप्लांट पर निर्भरता बढ़ गई है।”डॉ स्वप्निल शर्मा ने कहा, “छत्तीसगढ़ में वयस्कों में अल्कोहल और एनएएसएच से संबंधित लिवर सिरोसिस और बच्चों में बाइलिएरी आट्रेसिया और विल्सन डिजीज के मामले अधिक हैं। इन स्थितियों का अगर प्रारंभिक चरण में पता नहीं लगाया जाता है तो लिवर ट्रांसप्लांबट जिंदा रहने के लिए आवश्यलक हो जाता है।
अंग दान के बारे में पूरे भारत और छत्तीसगढ़ में जागरूकता बढ़ी है पर अभी भी इसे सही गति पकड़ना बाकी है। इस पहल के माध्यम से हम छत्तीसगढ़ के निवासियों के लिए अपनी लिवर केयर विशेषज्ञता लेकर आये हैं।” छत्तीसगढ़ राज्य में अंग प्रत्यारोपण की बढ़ती आवश्यकता के कारण राज्य सरकार ने अधिक जीवनरक्षक प्रत्यारोपण को बेहतर बनाने और सक्षम करने के लिए कैडवेरिक ऑर्गन डोनेशन ऐक्टर पेश किया है। फोर्टिस हॉस्पिटल मुलुंड, मुंबई ने इस घोषणा के अनुरूप रायपुर में लिवर केयर एंड ट्रांसप्लांट प्रोग्राम को मजबूत किया है, ताकि विशिष्टत देखभाल की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके।आज के आयोजन के दौरान साझा की गई रोगियों के किस्सेा लिवर की पुरानी बीमारियों वाले रोगियों की पीड़ा, उनके परिवारों की दुर्दशा और मैचिंग डोनर्स की दिल दहला देने वाली प्रतीक्षा का वर्णन करती हैं।
बेबी पीयूष की आंटी पूजा बताती हैं, “पीयूष (अब 2.5 साल का) का जन्म बाइलिएरी एट्रेसिया के साथ हुआ था और जब वह सिर्फ 6 महीने का था, तब उसका लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन हुआ था। प्रत्यारोपण के बिना उसके बचने की संभावना कम थी। वह वहुत गंभीर हालत में था। उसकी बिगड़ती हालत दिल तोड़ने वाली थी। पीयूष की दादी (मेरी माँ) ने अपने लिवर का एक हिस्सा दान करने की पेशकश की। शुरू में हमारे पास अंग दान के बारे में कई सवाल थे, जैसे मेरी माँ और भतीजे के जीवन की गुणवत्ता, अंग अस्वीकृति, जीवित रहने की अवधि आदि कैसी होगी। हालाँकि डॉ शर्मा ने अंगदान की प्रक्रियाओं को समझाया और हमारे संदेहों को दूर किया। प्रत्यारोपण के बाद मेरा भतीजा अपनी बीमारी से मुक्त हो गया है। मेरी मां भी स्वस्थ हैं।
“छत्तीसगढ़ के रानीगांव गांव में रहने वाले 15 वर्षीय कक्षा 10 के छात्र तन्मय 3 साल की उम्र से ही बीमार चले रहे थे। उसे कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जब वे 8 साल के थे तब उन्हें विल्सन डिजीज का पता चला था। वेल्लोर के एक अस्पताल में उसका इलाज जारी रहा, पर उन्हें रायपुर के डॉ स्वप्निल शर्मा के पास रेफर कर दिया गया। जब तक तन्मय के परिवार ने आखिरकार डॉ शर्मा से संपर्क किया, तब तक उसका लिवर काफी क्षतिग्रस्त हो चुका था। उसकी स्थिति गंभीर होने के बावजूद डॉ शर्मा और उनकी टीम ने एक जीवनरक्षक लिवर प्रत्यारोपण करने में कामयाबी हासिल की।
तन्मय के बड़े भाई तरुण ने उनके लिवर का एक हिस्सा दान करने की पेशकश की। तन्मय भी अब विल्सन रोग से मुक्त हैं और पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।तन्मय और पीयूष की कहानी इस बात का प्रतीक है कि कैसे भारत में मरीज उचित चिकित्सा सहायता प्राप्त करने के लिए दर-दर भटकते हैं। यह हमें दयालुता के सबसे बड़े काम यानी अंगदान पर एक महान सबक भी सिखाता है।
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