
जगदलपुर: आज से ठीक 12 साल पहले का वह आज का ही दिन था, जब 25 मई 2013 को यहीं से 43 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर दरभा से आगे झीरम घाटी में नक्सलियों ने खूनी खेल खेला था। शाम का समय था और झीरम घाटी मे मौजूद दर्जनों खूंखार माओवादिओं ने अंधाधुंध गोली बरसाकर दो दर्जन से अधिक कांग्रेस के दिग्गज नेताओं समेत आम नागरिकों और जवानों को मौत की नींद सुला दिया था। इस जघन्य घटना में 31 लोग मारे गये थे। उस घटना के 12 साल पूरे हो चूके है। Jhiram village झीरम गांव घाटी में 12 साल बाद भी मौत का सन्नाटा कायम है। न झीरम की तस्वीर बदली है न ही ग्रामीणों के हालात । सबकुछ वैसा ही दिख रहा है। थोड़ा बहुत नेशनल हाईवे की सड़क पक्की हुई है। गांव में वही. बदहाली, अभाव की जिंदगी और सरकारी योजनाओं का कोई लाभ झीरम के ग्रामीणों को मिलता नही दिख रहा है। READ ALSO :बोरे-बासी तिहार पर बड़ा बवाल, पूर्व भूपेश सरकार पर लगाए, राधिका खेड़ा ने भ्रष्टाचार के बड़ा आरोप…
Road Side सड़क किनारे अपने तीन साल के बेटे को दूध पिलाती चेयती यहां की दयनिय स्थिति की गवाह है। वह कहती है पति मर गया, एक बेटा है हमारे पास कुछ नही है। बेटा पूरी तरह नग्न है न कमीज न चड्डी । विधवा मां इस मासूम को जैसे तैसे पाल रही है। झीरम को 12 साल बीत गये, अगले 12 साल बाद यह मासूम 15 साल का हो जायेगा। उसके भविष्य की कोई गारंटी नही है क्योकि संभाग मुख्यालय से मात्र 45 किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे का यह गांव झीरम जहां चेयती विधवा को वृद्धावस्था पेंशन नही मिलती। वनोपज के अलावा उसके पास खाने पीने का कोई साधन नही है। चेयती के साथ एक 14 साल की लड़की बैठी थी। उसने अपना नाम सुनिता कश्यप बताया। उसने पढ़ाई छोड़ दी है। उसके माता-पिता मर चुके हैं। वह 6वीं तक पढ़ी थी, आगे का रास्ता किसी ने नही बताया। अभी वह नानी के पास रह रही है। READ ALSO :CG NEWS: छत्तीसगढ़ के किसानो ने लिया बड़ा फैसला, अब बांग्लादेश टमाटर भेजना बंद, टमाटर के लिए तरसेगा पाकिस्तान…
Jhiram village झीरम गांव में मिली महिला युवतियों से 12 साल पहले घटित नरसंहार के बारे में पूछने पर वें कुछ नही कहती, वैसे भी गोंडी बोली में ही वे बात करती हैं। थोड़ी बहुत हिन्दी जानती हैं, लेकिन वह पैसा लेनदेन या साग, सब्जी फल बेचते समय ही हिंदी बोलती हैं। काड़े और जिमलो टोकनी और सब्बल लेकर जमीन से खोदने बोड़ा के लिये जंगल जाने की बात कही
Jhiram village यह भी सोचनीय है कि झीरम गांव के लोगों को अपने ही सरपंच का नाम और पता नहीं मालूम । आयती, जोगी, सुनिता, काड़े और जिमलो कहते हैं- कौन है सरपंच नही मालूम, किस पारा में रहता है, यह भी नही मालूम। लेकिन झीरम गांव और घाट में स्थित बंजारीन माता मंदिर के बीच यात्री प्रतिक्षालय में भाजी बेच रही एक युवती ने सरपंच का नाम और पता बताया। उसने उंचे पहाड़ को दिखाते हुये कहा कि पहाड़ के पीछे ऐलंगनार गांव में सरपंच सोमु रहता है। झीरम गांव ग्राम पंचायम ऐलंगनार में आता है। पहले यह कनकापाल ग्राम पंचायत में आता था। भौगोलिक और बीहड़ इलाका होने से सरपंच से मिलना, जैसे पहाड़ को खोदने जैसा कठिन है। एक दूसरे पारा और गांव जाने में पगडंडी से होकर पहाड़ पार करना पड़ता है। READ ALSO :RAIPUR BREAKING: रायपुर के पचपेड़ी नाका निवासी, निकला कोरोना संक्रमित, इलाके में मचा हड़कंप…
Jhiram village झीरम कांड के 12 साल बाद भी मां की ममता बेटे की याद में तरस रही है। दरभा निवासी रमादेवी जोशी के लिए 25 मई 2013 का वह दिन मनहूस साबित हुआ, जब झीरम कांड ने उसका जवान बेटा छीन लिया। 25 दिन पहले बेटे की शादी हुई थी, नई दुल्हन आयी थी और घर में विवाह का उत्साह कम नहीं हुआ था। अचानक खबर आई कि सुकमा से लौटते समय शाम को नक्सलियों ने कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा पर हमला कर दिया है। जिसमें उसका 24 साल का जवान बेटा मनोज जोशी अपने बोलेरो वाहन को चला रहा था, जिसे नक्सलियों ने बारूदी सुरंग विस्फोटक से उड़ा दिया। वाहन के परखच्चे उड़ गए और मनोज हमेशा के लिए चल बसा। दरभा स्थित अपने निवास पर हरिभूमि से चर्चा में रमादेवी जोशी ने बताया कि मुझे सिर्फ 50 हजार मिले थे। वाहन का मुआवजा आज तक नहीं मिला है। READ ALSO :Chhattisgarh: 40 साल में पहली बार सूखा शिवनाथ नदी, 54 गांवों में बूंद बूंद लिए तराश रहे लोग, पढ़े पूरी खबर…
Jhiram village मनोज की मां रमादेवी ने कहा कि, 25 दिन शादी के बाद बेटा चल बसा, बहू को क्लर्क की नौकरी और 13 लाख रुपए मिले, वह बिलासपुर चली गई। फिर कभी नहीं आयी। पत्नी को सरकार से नौकरी और राशि मिल गई, लेकिन बेटे को जन्म देने वाली मां को कुछ नहीं मिला।