
ईरान: ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का हेलीकॉप्टर क्रैश में निधन हो गया है। हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार हुए ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी, विदेश मंत्री और अन्य लोगों के शव दुर्घटनास्थल से मिलने की भी पुष्टि हो चुकी है। आइए जानते हैं रईसी के बारे में। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को ले जा रहे हेलीकॉप्टर के क्रैश होने की खबर ने दुनियाभर में हलचल मचा दी। मीडिया रिपोर्ट की माने तो हेलीकॉप्टर का मलबा ढूंढ लिया गया है। दुर्घटनास्थल पर रईसी के जिंदा होने का कोई संकेत नहीं मिला है।
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी, विदेश मंत्री और अन्य लोगों के शव दुर्घटनास्थल से मिलने की भी पुष्टि हो चुकी है। आइए जानते हैं कि आखिर कौन हैं इब्राहिम रईसी, जिन्हें ढूंढने के लिए तमाम देशों ने मदद का हाथ बढ़ाया था। राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामनेई का उत्तराधिकारी भी माना जाता रहा है, ऐसे में उनके लापता होने पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। ईरान की सरकार की ओर से भी इसे लेकर ज्यादा कुछ कहा नहीं जा रहा है।
कौन हैं ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी?
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का जन्म 1960 में उत्तरी पूर्वी ईरान के मशहद शहर में हुआ था। रईसी के पिता एक मौलवी थे, लेकिन रईसी जब सिर्फ पांच साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया थ। रईसी की शुरुआत से ही धर्म और राजनीति की ओर झुकाव रहा और वो छात्र जीवन में ही मोहम्मद रेजा शाह के खिलाफ सड़कों पर उतर गए। रेजा शाह को पश्चिमी देशों को समर्थक माना जाता था।
15 साल की उम्र में ही शुरू की थी पढ़ाई
पूर्वी ईरान के मशहद शहर में शिया मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र मानी जाने वाली मस्जिद भी है। वे कम उम्र में ही ऊंचे ओहदे पर पहुंच गए थे। अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए उन्होंने 15 साल की उम्र से ही कोम शहर में स्थित एक शिया संस्थान में पढ़ाई शुरू कर दी थी। अपने छात्र जीवन में उन्होंने पश्चिमी देशों से समर्थित मोहम्मद रेजा शाह के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। बाद में अयातोल्ला रुहोल्ला खुमैनी ने इस्लामिक क्रांति के जारिए साल 1979 में शाह को सत्ता से बेदखल कर दिया था।
2021 में बने राष्ट्रपति
- सिर्फ 20 साल की उम्र में ही उन्हें तेहरान के करीब स्थित कराज का महा-अभियोजक नियुक्त कर दिया गया था।
- साल 1989 से 1994 के बीच रईसी, तेहरान के महा-अभियोजक रहे और इसके बाद 2004 से अगले एक दशक तक न्यायिक प्राधिकरण के डिप्टी चीफ रहे।
- साल 2014 में वो ईरान के महाभियोजक बन गए थे। ईरानी न्यायपालिका के प्रमुख रहे रईसी के राजनीतिक विचार ‘अति कट्टरपंथी’ माने जाते हैं।
- उन्हें ईरान के कट्टरपंथी नेता और देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयातुल्लाह अली खुमैनी का करीबी माना जाता है।
- वे जून 2021 में उदारवादी हसन रूहानी की जगह इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के राष्ट्रपति चुने गए थे।
- चुनाव अभियान के दौरान रईसी ने खुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रचारित किया था कि वे रूहानी शासन के दौरान पैदा हुए भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट से निपटने के लिए सबसे अच्छे विकल्प हैं।
- इब्राहीम रईसी, शिया परंपरा के मुताबिक हमेशा काली पगड़ी पहनते थे, जो यह बताती है कि वो पैगंबर मुहम्मद के वंशज हैं।
- उन्हें ‘हुज्जातुलइस्लाम’ यानी ‘इस्लाम का सबूत’ की धार्मिक पदवी भी दी गई है।
डेथ कमेटी के सदस्य
इस्लामिक क्रांति के बाद उन्होंने न्यायपालिका में काम करना शुरू किया और कई शहरों में वकील के तौर पर काम किया। इस दौरान उन्हें ईरानी गणतंत्र के संस्थापक और साल 1981 में ईरान के राष्ट्रपति बने अयातोल्ला रुहोल्ला खुमैनी से प्रशिक्षण भी मिल रहा था। रईसी जब महज 25 साल के थे तब वो ईरान के डिप्टी प्रोसिक्यूटर (सरकार के दूसरे नंबर के वकील) बन गए। बाद में वो जज बने और साल 1988 में बने उन खुफिया ट्रिब्यूनल्स में शामिल हो गए जिन्हें ‘डेथ कमेटी’ के नाम से जाना जाता है।
इन ट्रिब्यूनल्स ने उन हजारों राजनीतिक कैदियों पर ‘दोबारा मुकदमा’ चलाया जो अपनी राजनीतिक गतिविधियों के कारण पहले ही जेल की सजा काट रहे थे। इन राजनीतिक कैदियों में से ज्यादातर लोग ईरान में वामपंथी और विपक्षी समूह मुजाहिदीन-ए-ख़ल्क़ा (MEK) या पीपुल्स मुजाहिदीन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान (PMOI) के सदस्य थे। इन ट्रिब्यूनल्स ने कुल कितने राजनीतिक क़ैदियों को मौत की सजा दी, इस संख्या के बारे में ठीक-ठीक मालूम नहीं है लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इनमें लगभग 5,000 पुरुष और महिलाएं शामिल थीं।
फांसी के बाद इन सभी को अज्ञात सामूहिक कब्रों में दफना दिया गया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता इस घटना को मानवता के विरुद्ध अपराध बताते हैं। इब्राहिम रईसी ने इस मामले में अपनी भूमिका से लगातार इनकार किया है लेकिन साथ ही उन्होंने एक बार यह भी कहा था कि ईरान के पूर्व सर्वोच्च नेता आयातोल्ला के फतवे के मुताबिक यह सजा ‘उचित’ थी।