मकर संक्रांति के दिन तेल डाल के स्नान का महत्व, क्यों खाए जाते हैं तिल…

रायपुर: मकर संक्रांति पर तिल या तिल का तेल पानी में डालकर नहाने का धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है. तिल का तेल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है, इससे स्किन की कोशिकाएं अच्छी रहती हैं. तिल के तेल की तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में तिल के तेल से नहाना बहुत ही फायदेमंद होता है.

पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव को पसंद नहीं करते थे. इसी कारण उन्होंने शनि को उनकी मां छाया से अलग कर दिया. माता और पुत्र को अलग करने के कारण सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप मिला. सूर्य देव को कुष्ठ रोग से पीड़ित देख सूर्य देव के दूसरे बेटे यमराज ने तपस्या की. यमराज की तपस्या के बाद सूर्य देव कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए.

परन्तु सूर्य देव ने क्रोध में आकर शनि देव और उनकी माता के घर ‘कुंभ’ (शनि देव की राशि) को जला दिया. सूर्य देव के इस कदम से शनि और छाया को काफी दुख हुआ. इसके बाद यमराज ने सूर्य देव को समझाया. यमराज की बात सुनने के बाद सूर्य देव, शनि देव और छाया से मिलने के लिए घर पहुंचे.
कुंभ के जलने के बाद वहां सबकुछ जलकर खाक में तब्दील हो चुका था, परन्तु काला तिल जस का तस रखा हुआ था. सूर्य के घर पधारने के बाद शनि देव ने उनकी पूजा काले तिल से की. इसके बाद शनि देव को उनका दूसरा घर ‘मकर’ मिला. शनि द्वारा सूर्य को तिल से पूजे जाने के बाद यह मान्यता है कि छाया के घर में सुख की प्राप्ति हुई. उसी दिन से मकर संक्रांति पर तिल का विशेष महत्व माना जाता है.