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जो खून-पसीना लगता है वह भी दर्शकों को फिल्म की ओर खींचने में अहम भूमिका निभाता है: सलमान खान

मुंबई: मशहूर अभिनेता सलमान खान ने कहा है कि उन्हें वाकई नहीं पता कि वह और शाहरुख, आमिर तथा अक्षय कुमार जैसे अन्य अभिनेता तीन दशक से अधिक समय से हिंदी फिल्म उद्योग में कैसे टिके हुए हैं, हालांकि यह शायद उनकी कड़ी मेहनत, फिल्मों के सही चयन और नसीब की वजह से हो सकता है. सलमान ने कहा कि फिल्म बनाने की प्रक्रिया में जो खून-पसीना लगता है वह भी दर्शकों को फिल्म की ओर खींचने में अहम भूमिका निभाता है.

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, ”ईश्वर की कृपया से मैं शुक्रवार, शनिवार और रविवार किसी भी दिन आ सकता हूं क्योंकि प्रशंसक मेरे साथ इस कदर खड़े हैं. इसके अलावा फिल्म भी इस स्तर की होनी चाहिए जिसे वे दोबारा देखना चाहें.” सलमान ने कहा, ”यह तभी होगा जब फिल्म में आपका खून-पसीना लगा हो और आप सेट पर तथा सेट के बाहर बिताए जाने वाले वक्त को लेकर गंभीर हों…जैसे कि आप उसी फिल्म को सोच रहे हों, खा रहे हों, पी रहे हों और जी रहे हों.”

फिल्म ‘बीवी हो तो ऐसी’ (1988) में सहायक कलाकार के रूप में अपने कॅरियर की शुरुआत करने वाले 57 साल के सलमान ने 1989 में आई ‘मैंने प्यार किया’ से अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई थी और आज अपनी नई फिल्म ‘टाइगर 3’ की सफलता का आनंद उठा रहे हैं.

सनी देओल की ‘गदर 2’ की सफलता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ”देखिए, मुझे नहीं पता कि यह क्या है लेकिन हम वाकई नसीब वाले रहे हैं कि हम तीन दशक से अधिक वक्त से बने हुए हैं. हम सभी दरअसल 90 के दशक में लगभग एक वक्त में आए थे. अजय (देवगन), अक्की (अक्षय कुमार), आमिर, शाहरुख और मैं तथा हम सब इसमें शामिल हैं. अब सनी की फिल्म बड़ी हिट हुई है. सनी वापस आ गए हैं.”

सलमान के मुताबिक, ”यह फिल्मों के सही चयन पर और आप उनमें कितनी दिलचस्पी रखते हैं, उस पर भी निर्भर करता है. मुझे लगता है कि मैं सौभाग्यशाली रहा हूं कि फिल्म जगत में इतने साल से बना हुआ हूं.” सलमान की ‘टाइगर 3’ दिवाली पर सिनेमाघरों में प्रर्दिशत हुई थी और 10 दिन में 400 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार कर चुकी है.

कोरोना महामारी के बाद यह साल बड़े बजट की, मध्यम बजट की फिल्मों और स्थानीय फिल्मों के सिनेमाघरों में प्रदर्शन के लिए खासतौर पर अच्छा रहा है. कई फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया है. सलमान ने कहा, ”मेरा मानना है कि सिनेमाघरों में जाने की यह संस्कृति जोड़ने वाली संस्कृति है.” उन्होंने कहा कि अगर कोई फिल्म अच्छी है तो दर्शक इसे किसी ‘पायरेटेड वेबसाइट या डीवीडी’ पर घर पर देखना पसंद नहीं करेंगे.

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