
लखनऊ: आदिपुरुष फिल्म पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है. आदिपुरुष फिल्म के खिलाफ दाखिल याचिका में बुधवार को तीसरे दिन की सुनवाई में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सेंसर बोर्ड पर सख़्त टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की फिल्म को पास करना एक ब्लंडर है. कुरान पर ऐसी छोटी सी डाक्युमेंट्री बनाइए, फिर देखिए क्या होता है.
इससे पहले मंगलवार को सुनवाई में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि समझ में नहीं आता कि फिल्म निर्माताओं ने एक धर्म विशेष की सहन शक्ति की परीक्षा क्यों ली है. कोर्ट ने कहा कि जो नरम हो, क्या उसे दबाया जाएगा. ये तो अच्छा है कि ये फिल्म ऐसे धर्म के बारे में है, जिसके मानने वाले किसी तरह की कानून व्यवस्था की दिक्कत नहीं करते. कोर्ट ने कहा कि उन्होंने खबरों में देखा कि कुछ सिनेमा हॉल में ये जहां ये फिल्म चल रही थी. कुछ लोग गए और वहां फिल्म बंद करवा दी. वो इससे ज्यादा भी कर सकते थे. कोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर हम लोग इस पर भी आंख बंद कर लें क्योंकि ये कहा जाता है कि ये धर्म के लोग बड़े सहिष्णु होते हैं, तो क्या उनका टेस्ट लिया जाएगा.
कोर्ट में इस फिल्म के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट ने कहा कि धार्मिक ग्रंथों के प्रति लोग संवेदनशील होते हैं, उनके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने ये भी साफ किया कि इस मामले में दाखिल याचिका कोई प्रोपेगेंडा नहीं है, बल्कि उन्होंने एक जायज मुद्दा उठाया है. याचिका में जिस तरह से फिल्म को बनाया गया है, चरित्रों को दिखाया गया है. उस पर विरोध जाहिर किया गया है. कोर्ट ने कहा कि लोग घर से निकलने से पहले रामचरितमानस का पाठ करके निकलते हैं.
डिप्टी सालिसिटर जनरल की ओर से कोर्ट को बताया गया कि फिल्म से कुछ आपत्तिजनक डॉयलॉग हटा दिए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इससे कुछ नहीं होगा. आप फिल्म में जो दिखाया गया है, उसका क्या करेंगे. कोर्ट ने उन्हें कहा कि वो संबंधित अधिकारियों से इस बारे में उनका रुख जानकर अदालत के सामने रखें. कोर्ट ने फिल्म के डॉयलॉग लेखक मनोज मुंतसिर शुक्ला को भी पार्टी बनाने का निर्देश देते हुए उनके खिलाफ भी नोटिस जारी करने का निर्देश दिया.