छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में 10 साल के बच्चे राहुल को बचाने के लिए देश का सबसे बड़ा बोरवेल रेस्क्यू ऑपरेशन किया गया। पांच दिन चले इस ऑपरेशन के बाद राहुल सुरक्षित बाहर निकला। प्रशासन से लेकर सेना और NDRF से लेकर SDRF के जवानों ने दिन-रात एक कर दिए। इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो जान जोखिम में डालकर काम कर रहे थे। इनकी एक गलती बच्चे के साथ इनकी जान पर भी भारी पड़ सकती थी.(Rahul the real hero)
प्रशासन ने राहुल को बचाने क लिए अंडर ग्राउंड सिस्टम में काम करने वाले लोगों की मदद ली। इनमें सीवरेज सिस्टम बनाने वाले श्चिम बंगाल के मालदा का रहने वाले मजदूर भी शामिल हैं। इन्हीं ने राहुल तक पहुंचने के लिए 63 फीट गहरी खुदाई की और टनल बनाई। इनमें मुरफूल हक, भावेश शाह, इमरान नवाब, धवल मेहता और अंजारूल शामिल हैं। अंजारूल ही वह व्यक्ति हैं, जो सबसे पहले राहुल के पास पहुंचे। उसे रेस्क्यू किया और सुरक्षित बाहर निकाला। रियर हीरो की दूसरी कहानी इन्हीं हिम्मत वालों की..
टनल का काम कर रहे एक्सपर्ट भावेश शाह ने बताया कि बोर के बगल में 63 फीट गहरी खाई खोदी गई। फिर उसके नीचे बोर तक पहुंचने के लिए टनल बनाने का काम शुरू हुआ। शुरुआत में काम तेजी से चला, फिर चट्टानें मिलने लगीं। उसे काटकर निकालने में दिक्कत हो रही थीं। जितना टनल बनाकर आगे बढ़ते, अंदर एक के बाद एक चट्टान मिलती जातीं। इस ऑपरेशन में राहुल को सुरक्षित निकालना था, इसलिए सावधानी जरूरी थी। अगर चट्टानें नहीं होतीं तो राहुल दो दिन पहले ही बाहर होता.
डोलोमाइट चट्टान बन रही थी बाधा
टीम में शामिल इमरान व धवल मेहता कहते हैं कि कि आमतौर पर अंडर ग्राउंड पाइप लाइन के लिए सुरंग खोदना और सिस्टम लगाना दूसरी बात है। पाइप लाइन लगाने के लिए पत्थर मिल जाए तो उसे विस्फोट कर भी बाहर निकाला जा सकता है, लेकिन इस तरह से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना काफी चुनौतीपूर्ण था। यह हमारे लिए बिल्कुल नया अनुभव रहा। इस काम में बहुत सावधानियां थीं और चुनौतियां भी कम नहीं थी। अंदर सुरंग बनाने के लिए डोलोमाइट के चट्टानों को सुरक्षित तरीके से तोड़ना आसान नहीं था.\
रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान मजदूर अंजारूल (22) और मुरफल हक (32) भी शामिल थे। चट्टान काटने से निकल रही डस्ट, पत्थर के टुकड़े और मलबे को दोनों बाहर निकाल रहे थे। रात करीब 9.40 बजे सुरंग का खुदाई करते हुए राहुल का पैर नजर आया। इसके बाद अंजारूल को ही आगे भेजा गया। सेफ्टी बेल्ट लगाकर मुंह के बल नीचे उतरा। वहां जाकर राहुल को आवाज दी। फिर चौड़े होल से बाहर निकालकर उसे सेफ्टी बेल्ट पहनाई और राहुल को बाहर निकाला गया.
तीन फीट चौड़ाई में राहुल ने बिताया चार दिन
अंजारूल और मुरफुल ने बताया कि राहुल जिस बोर में फंसा था उसकी चौड़ाई और गोलाई महज एक फीट थी। लेकिन वह जहां पर जाकर गिरा, वह जगह तीन फीट चौड़ी थी। राहुल पत्थर के ऊपर टिका था। उसके हाथ और पैर पानी में डूबे हुए थे। इस दौरान पांच दिन तक राहुल उसमें फंसा रहा। उसके पैर-हाथ मुड़े हुए थे.
इस रेस्क्यू ऑपरेशन में SECL से लेकर तमाम माइनिंग डिपार्टमेंट के जानकार अफसर और एक्सपर्ट जुटे हुए थे। जिन्होंने गहरे बोर की नाप की थी। इसके साथ ही गड्ढा खोदकर सुरंग बनाने के लिए एक्सपर्ट ने जांच की। तब बताया गया कि पहले वर्टिकल 63 फीट गहरे खाई खोदना होगा। इसके बाद बोर तक पहुंचने के लिए सुरंग बनानी होगी। 63 फीट नीचे जाने के बाद सुरंग की खुदाई की गई। इसके बाद बोर तक पहुंचे तो पता चला कि राहुल 73 फीट पर फंसा है। फिर राहुल तक पहुंचने के लिए 10 फीट नीचे जाना तय हुआ.
दरअसल, राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने राहुल को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। मदद के लिए प्रदेश भर में अंडर ग्राउंड सिस्टम पर काम करने वाले निजी और शासकीय संस्थानों की मदद ली गई। इनमें काम करने वाले लोगों को बुलाया गया। उसी में रायपुर के टनलाइड इंफ्रा लिमिटेड जो सीवरेज सिस्टम बनाने का काम कर रही है, वह भी शामिल थी। सूचना मिलने के बाद उनके एक्सपर्ट और मजदूर भी मौके पर पहुंचे और NDRF व सेना के निर्देश में काम शुरू किया.(Rahul the real hero)