पत्थलगांव– पांचवीं अनुसूची में स्पष्ट है कि आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासी नहीं खरीद सकते हैं। इससे आदिवासी भूमिहीन हो जाएंगे। पत्थलगांव क्षेत्र में विगत कुछ वर्षों में आदिवासी किसान की भूमि को आदिवासी के नाम पर ही खरीदे और बेचे जाने के पीछे की वास्तविक स्थिति की जांच हो जाये तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है,नॉन सेलेबल होने के बावजूद आदिवासी समुदाय की कीमती जमीन को भूमि माफिया और दलाल के माध्यम से धड़ल्ले से बेची जा रही है.(Brokers selling tribal land)
बता दें कि आदिवासियों की जमीन की खरीद-बिक्री किए जाने का प्रावधान नहीं है। क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों से सस्ते दाम पर अपने आदिवासी परिचितों के नाम एग्रीमेंट लिखवाकर उसे ऊंची कीमत पर बेच कर मालामाल हो रहे हैं।क्षेत्र में आदिवासियों की जमीन की खरीदी-बिक्री आदिवासी के नाम पर ही होती है, लेकिन ऐसे मामलों में भूमि क्रय करने वाला कोई अन्य सक्षम व्यक्ति होता है, जो रजिस्ट्री की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उस भूमि का उपभोग करता है.
ऐसे सक्षम व्यक्ति, आदिवासियों की जमीन को हथियाने के लिए अपने किसी परिचित गरीब आदिवासी व्यक्ति को सामने करके उसके नाम पर जमीन खरीद कर उसका उपयोग स्वंय करते है। अपने इस अवैधानिक कारनामे पर पर्दा डालने के उद्देश्य से वह बाकायदा किराया नामा का दिखावटी अनुबंध बनाकर अपने पास रख लेता हैं,प्रशासन को ऐसे मामलों में स्व विवेक से 170(ख) का प्रकरण कायम कर मुल स्वामी को भूमि लौटाने की कार्रवाई करने की जरूरत है। यहां तक कि नेशनल हाइवे में चिन्हांकित की गई भूमि जिसका की मुवावजा भी दे दिया गया है दलालों से सांठ गांठ कर उस भूमि की भी रजिस्ट्री कर दी गई है.
तहसील को बना दिया दलालों का अड्डा,
पत्थलगांव तहसील कार्यालय में अधिकारी और कर्मचारियों के इशारे पर दलालों का ऐसा मकडज़ाल तहसील कार्यालय में बुना गया है, कि आम आदमी अपना कोई भी काम बिना रुपए चढ़ाए नहीं करा पा रहा है। तहसील में दलाल और बिचौलियों के इशारे पर हर वह अनैतिक कार्य को बखूबी अंजाम दिया जा रहा है। आखिरकार भूपेश सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को उन्ही के अधिकारी और कर्मचारी कैसे पतीला लगाते हैं ये अगर देखना है तो आप पत्थलगांव तहसील का रुख कर सकते हैं.(Brokers selling tribal land)