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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 71 वें जन्मदिन पर विशेष आलेख

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सहकारवाद के उद्घोष से देश में सहकारी आंदोलन को नई आबोहवा मिली है। वे यह भलीभंाति जानते है कि आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना सहकारिता से ही साकार होगी। श्री मोदी जी सदैव सामूहिक शक्ति पर ही बल देते है। सहकारिता भी सामूहिक शक्ति का स्वरूप है। सहकारिता एक ऐसी कारगर विधा है जो परस्पर सहयोग, समन्वय व प्रयास से आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। ’’एक के लिए सब और सब के लिए एक’’ की भावना हमें विरासत में मिली है। वास्तव में सहकारिता ही भारत की जीवनशैली है जिसे परम्परागत ढंग से पीढ़ी दर पीढ़ी लोग अपनाते आ रहे है। कालंातर में विभिन्न विचारधाराओं व सिद्धंातो के चलते सहकारिता की भावना कमजोर हुई। लोग जीवन मूल्यों व आदर्शों के स्थान पर धनोपार्जन को ज्यादा महत्व देते हुए धनोपार्जन के नैतिक अनैतिक तरीको का इस्तेमाल करने लगे। पूंजीवाद के चलते समाज में जो विकार आया वह सबने महसूस किया। मानव समाज अमीर और गरीब दो वर्गो में बंट गया। अमीरी और गरीबी के बीच की खाई दिनोदिन बढ़ती चली गई। एक ओर जहाँ मुठ्ठी भर लोग अपार धन सम्पदा के स्वामी हो गए तो वहीं समाज का बहुत बड़ा तबका गरीबी, बेकारी, और भूखमरी से जूझने लगा। इस असमानता के कारण ही अनेक समाजिक व्याधियंा उत्पन्न हुई। जबकि सहकारिता में समानता का भाव होता है। मिल-जुल कर काम करना और एक-दूसरे से प्रेम-रिश्ते बनाकर जीवन बसर करना ही हमारा संस्कार है।

बहरहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 15 अगस्त 2021 को लाल किले के प्राचीर से देश और दुनिया को भारत की इसी संस्कृति का परिचय कराते हुए ’’सहकार-वाद’’ शब्द का उद्घोष किया। उन्होने कहा कि ’’अर्थजगत में पूंजीवाद और समाजवाद इसकी चर्चा तो बहुत होती है, लेकिन भारत सहकारवाद पर भी बल देता है। सहकारवाद हमारी परम्परा, हमारे संस्कारों के भी अनुकूल है। सहकारवाद जिसमें जनता-जनार्दन की सामूहिक शक्ति अर्थव्यवस्था की चालक व्यक्ति के रूप में प्रेरक शक्ति बने, ये देश की जमीनी स्तर की अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम क्षेत्र है। सहकार जगत ये सिर्फ कानून-नियमों के जंजाल वाली एक व्यवस्था नही है बल्कि सहकारिता एक ैचपतपज है, सहकारिता एक संस्कार है, सहकारिता एक सामूहिक चलने की मनः प्रवृत्ति है। उनका सशक्तिकरण हो, इसके लिए हमने अलग मंत्रालय बनाकर इस दिशा में कदम उठाए है और राज्यों के अन्दर जो सहकारी क्षेत्र है, उसको जितना ज्यादा बल दे सकें, वो बल देने के लिए हमने ये कदम उठाया है।’’ प्रधानमंत्री जी के ये विचार नये भारत के विजन का प्रतिबिंब है। उनके इस कथन से देश में सहकारिता की भावना का पुनरूत्थान हुआ है। पूरे देश में सहकारिता की नई बयार बहने लगी है। केन्द्र में नये सहकारिता मंत्रालय की स्थापना उनके इसी विजन का हिस्सा है। जिसके  दूरगामी परिणाम हर भारतीय के लिए सुखद होंगे।

 कृषि के क्षेत्र में दस हजार नये किसान उत्पाद संगठनों के गठन का लक्ष्य भी सरकार की दूरगामी सोच का हिस्सा है। किसान उत्पाद संगठन भी किसानों का स्वैच्छिक संगठन है जो परस्पर सहयोग एंव सामूहिक प्रयास से उन्नति के मार्ग प्रशस्त करता है। किसान उत्पाद संगठन के माध्यम से किसान अपनी उपज में वृद्वि तो करेंगें ही साथ ही साथ लागत मूल्य में भी कमी आयेगी यानी कम लागत में अधिक उत्पादन करके कृषक अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकेगें। इसके अलावा खाद, बीज, एवं कीटनाशक दवाईयों की आपूर्ति सरलता से होने लगेंगी। सामूहिक प्रयास से वे कृषि की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सकेगें। ये संगठन किसानों को उत्पादित वस्तु की सफाई, छटंाई, ग्रेडिंग एवं पैकिंग के अलावा प्रोसेसिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराएगी। आवश्कतानुसार किसान उत्पाद संगठनों के पास भंडारण के लिए वेयर हाउस की भी व्यवस्था होगी। किसानों को परिवहन, लोडिंग, अनलोडिंग जैसी लाजिस्टिक सेवायें भी एफ. पी. ओ. के माध्यम से उपलब्ध होगी। किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या विपणन की होती है, उन्हें या तो बाजार का सही ज्ञान नही होता अथवा मजबूरी व अभाव में बाजार तक उनकी पहुंच नही हो पाती, लेकिन किसान अपना संगठन बनाकर अपनी उपज के विक्रय के लिए सौदेबाजी कर लाभकारी मूल्य प्राप्त कर सकेगें। यानी किसानों को बिचौंलियों से मुक्त करने का यह बेहतर उपक्रम है। आने वाले दिनों में हमें एक बात और देखने को मिलेंगी कि किसान अपनी उपज की गुणवत्ता बढ़ाने में सक्षम होगें। कुल मिलाकर किसान उत्पाद संगठन किसानों की समृद्धि व खुशहाली का बेहतर विकल्प बनेगा।
 कोरोना महामारी के भीषण दौर में जब देशव्यापी लॉकडाउन की स्थिति निर्मित हुई तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का मंत्र दिया। सरकार ने कमजोर व गरीब वर्ग को लक्षित कर अनेक योजनाएँ बनाई तथा पूर्व संचालित योजनाओं को प्रोत्साहित करने भारी भरकम आर्थिक पैकेज दिया। युवा वर्ग को आर्थिक रूप से सशक्त, सक्षम तथा स्वावलम्बी बनाने के लिए तेजी से प्रयास हुए। लघु व मध्यम उद्योगों को भारी राहत पैकेज देकर उसे अपग्रेड करने की योजना बनाई गई। फलस्वरूप रोजगार के नए अवसर का सृजन हुआ। लघु एवं फुटकर व्यापारियों यहा तक कि रेहड़ी-पटरी वालों को प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना से लाभान्वित किया गया। युवा बेरोजगारों को शिक्षा व प्रशिक्षण के लिए स्टार्ट-अप इंडिया, ई- स्किल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना पूर्व से ही संचालित है जो कौशल उन्नयन के माध्यम से नये कैरियर के साथ आय वृद्धि का उत्तम माध्यम है। यदि इन योजनाओं के लाभार्थि यदि सहकारिता के माध्यम से काम करे तो बेहतर परिणाम आ सकते है। मसलन लघु उद्योग स्थापित करने वाला व्यक्ति ऐसी मंशा रखने वाले अन्य व्यक्तियों का समूह बनाकर बड़ी इकाई स्थापित करें तो ज्यादा लाभप्रद हो सकता है। इसी प्रकार लघु व फुटकर व्यापारी भी समूह बनाकर बड़ा व्यापार स्थापित कर सकते है। व्यापार में यदि सामूहिक शक्ति का प्रयोग होगा तो कार्य क्षमता में वृद्धि तो होगी ही साथ ही साथ नई तकनीक व संचार संसाधन की उपलब्धता संभव हो जाने से बाजार का विस्तार होगा।

सहकारिता में निर्बल को सबल, अक्षम को सक्षम तथा निशक्त को सशक्त बनाने की अद्भूत क्षमता है। सहकारिता की भावना जितनी ज्यादा विकसित होगी सहकारी आन्दोलन उतना ज्यादा व्यापक व सर्वव्यापी होगा। वास्तव में यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की अचूक दवा है। भारत में इन दिनों बह रही सहकारिता की नई बयार अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है। निःसंदेह इस नई आबोहवा से सह़कारिता एक व्यापक जन अंादोलन का स्वरूप लेगा जो समृध्द भारत, सक्षम भारत और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा।
उक्त आलेख के लेखक श्री अशोक बजाज है

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