राजिम 8 अगस्त। हरेली का त्यौहार प्रदेश समेत अंचल में धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर किसान कृषि कार्य बंद रखकर आज सुबह से ही कृषि कार्य में उपयोग किए जाने वाले औजारों जिममें नागर, बक्खर, रापा, कुदाली, बसूला, टंगिया, आरी, भंवारी, चतवार, आरा, आरी,कोप्पर,जूड़ा को धोकर साफ सफाई किया गया तथा लाल मुरूम लाकर उनके ऊपर रख दिया गया। छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए गेडी बनाया गया है। उनकी भी पूजा अर्चना की गई। पूजन अनुष्ठान में बिल्वपत्र को रखा गया जिनके ऊपर गेहूं के आटे का चीला चढ़ाया गया तथा दूध समर्पित की गई दीप जलाकर नारियल अगरबत्ती के साथ आरती उतारी गई तथा हुमन किया गया। इस मौके पर ग्रामीण देवी
देवताओं की स्मरण भी किया गया और हरियाली की कामना करते हुए किसान कृषि औजारों के प्रति कृतज्ञता अर्पित की तथा कृषि काम में आने वाले बैल, भैंस तथा ट्रैक्टर की भी पूजन किया गया आज हरेली पर्व पर बैलों को धोने के बाद उन की चमक स्पष्ट निकल रही थी। इधर गृहणियो के द्वारा छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए गए थे जिसे लोगों ने छक्कर खाया। सुबह से ही रावत परिवार के लोग अपने साथ में दशमूल और बनगोंदली लाए हुए थे इसे प्राप्त करने के लिए किसान दाल चावल दिए और बदले में यह जड़ी अपने घर ले आए लोक मान्यता है कि इसे खाने से शरीर स्वस्थ रहता है। क्योंकि दोनों ही जड़ी कड़वा होते हैं। वही पशुओं को आटे के साथ नमक खिलाया गया। इसे खिलाने के पीछे उनके भी स्वास्थ्य ठीक रहे यही धारना है। लॉकडाउन के चलते कहीं भी हरेली उत्सव पर बैल दौड़ या फिर गेड़ी की स्पर्धा नहीं हुई बल्कि गेड़ी खपाकर लोग चलते जरूर दिखें। खासतौर से छोटे बच्चों में इनका उत्साह ज्यादा ही देखने को मिला। बता देना जरूरी है कि प्राचीन काल में गली मोहल्ले में सीसी रोड नहीं होने के कारण कीचड़ ज्यादा होते थे तब उनकी जड़ों को पार करने के लिए त्योहारों पर गेड़ी खपाने की परंपरा चली। यह बांस की लकड़ी से बनाया जाता है। इसमें 1 या फिर डेढ़ दो फीट की दूरी पर लकड़ी में खिला गढ़ा दिया जाता है उसे बुच की रस्सी से पऊ के सहारे पऊठा को कसकर बांधा जाता है जिसमें पांव रखते हैं ऊपर सर्तक लंबी बांस की लकड़ी को दोनों हाथ से पकड़ कर चलते हैं तो इसमें आवाज भी आती है और लोग गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं। वर्तमान में अनेक जगहों पर गेड़ी प्रतियोगिता होती है।
परंतु कोरोनावायरस के चलते सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर पाबंदी लगाई है जिसके कारण या स्पर्धा नहीं हो पा रही है फिर भी लोग इनका रस्म अदायगी के साथ ही मजे लेने से नहीं चूक रहे हैं। ज्ञातव्य हो कि किसान अपने खेतों में पौधे की हरियाली को देखकर अपनी प्रसन्नता जाहिर करने के लिए हरेली का त्यौहार उत्साह से मनाता है। जिसकी झलक आज राजिम शहर समेत चौबेबांधा, सिंधौरी, बरोड़ा, श्यामनगर, तर्रा,कुरूसकेरा, कोपरा, भेंडरी, रावड़, लोहरसी,धूमा, परतेवा, देवरी, बेलटुकरी, पीतईबंद, भैंसातरा, लफंदी, बकली, परसदा, अरंड, पोखरा, हथखोज, पीपरछेड़ी, रोहिना, खुटेरी, पथर्रा, नवाडीह, पीपरछेड़ी, सेंहरतरा आदि गांव में देखने को मिली।