लुकेंद्र साहू, सिरपुर – महासमुंद
महिलाओं को आगे लाने अभिनव पहल
चौकी प्रभारी बुन्देली के एक नए नोटिस से वे लोग परेशान हैं जो अपनी सरपंच पत्नी की जगह पर खुद को काबिज होते देख राजनीतिक रोटी सेकना था और वहीं कहीं ना कहीं बुन्देली प्रभारी विकास शर्मा की इस पहल को अच्छा बताया जा रहा है।
नोटिस के बारे में पूछने पर विकास शर्मा ने बताया कि बहुत बार ऐसे मौके आते हैं जब लोग खुद को एस. पी. बताते हैं और एस. पी. का अर्थ पूछने पर सरपंच पति कहते हैं, इसके पीछे का कारण है कि चुने हुए महिलाओं को आगे आने का मौका मिले इसलिए ऐसा किया गया है, उन्होंने निवेदन किया कि लोगों की समस्याओं के लिए चुने हुए जनप्रतिनिधि ही खुद आगे आएं । ऐसे ही अन्य पदों जैसे जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य और विधायक के लिए भी इस प्रकार का नियम होना चाहिए।
अगर हम घर चला सकते हैं तो पंचायत क्यों नहीं?
पुणे जिले के कमलाबाई काकड़े नाम की एक महिला ने यह अपनी सहयोगी महिलाओं से सवाल पूछा था। यह महिला 1963 से 1968 तक की अवधि के लिए सरपंच चुनी गयी थी। पहली बार पुणे जिले के बारामती तालुका में निम्बुट नामक गाँव में सर्व-महिला पंचायत बनी थी। कई महिलाएं चुनाव लड़ने से डर रही थीं लेकिन क्म्लाबार ने उनकी हिम्मत दिलाई। “ “डरना क्यों”? उनहोंने पूछा, “अगर तुम घर चला सकती हो तो पंचायत क्यों नहीं चला सकती? यह प्रश्न आज हर स्त्री पुरुष को कुछ सोचने पर मजबूर करता है। पांच साल के अंदर निम्बुट की सर्व-महिला पंचायत ने ग्राम पंचायत के कार्यालय भवन का निर्माण किया, स्कूल की मरम्मत की और गान के लिए विद्युत आपूर्ति स्कीम मंजूर की। उन्हें जीप में बैठकर तालुका मुख्यालय में बैठक में भाग लेने का अनुभव भी प्राप्त हुआ और आम सभा में कुर्सी पर बैठकर अपनी राय व्यक्त करने का भी अनुभव मिला। कुछ महिलाओं को औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं थी लेकिन घर के बाहर कदम रखने के फलस्वरूप उनको जो आत्मविश्वास प्राप्त हुआ। उससे दूसरी महिलाओं का मार्गदर्शन हुआ जो दूसरे इलाकों में ग्राम पंचायतों चुनाओं में भाग लेना चाहती थीं।