
बस्तर के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर गुंडाधुर ने 10 फरवरी 1910 को अंग्रेजों और बस्तर शासक रुद्र प्रताप सिंह के खिलाफ विद्रोह की विगुल फुकी थी। इसी की याद में पूरे बस्तर संभाग में 10 फरवरी के दिन को भूमकाल दिवस के रूप में मनाया जाता है । इस भूमकाल दिवस के दिन धुर अबूझमाड़ क्षेत्र के बेलनार में भूमकाल दिवस मनाया गया। इसमें अबूझमाड़ क्षेत्र और बीजापुर जिले के दर्जनों गांव से 5 हजार से अधिक आदिवासी भूमकाल दिवस मनाने बेलनार पहुंचे। इसे कवर करने के लिए मैं बस्तर की टीम भी बेलनार पहुंची……
बेलनार में आयोजित भूमकाल दिवस में वीर गुंडाधुर के बलिदान को याद किया गया। वहीं पारम्परिक गीत और नृत्य कर बड़े हर्ष और उल्लास के साथ इस दिवस को मनाया गया। आदिवासी अपने पारंपरिक वेशभूसा में पहुंचे वहां हजारों आदिवासी देखते ही बन रहे थे। छोटे-छोटे बच्चे और युवक-युवतियों ने मनमोहक नृत्य का प्रदर्शन किये, साथ ही साथ वीर गुंडाधुर को याद करते हुए उनके पद चिन्हों पर चलते हुए अपने जल-जंगल-जमीन और आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए संकल्पित हुए, बस्तर में पेशा कानून और ग्राम सभा की महत्ता को लेकर एकजुट होने की प्रण लिए……
कहा जाता है कि जब वीर गुंडाधुर ने अंग्रेजों को बस्तर से खदेड़ा तो सभी इस बात का जश्न मना रहे थे। लेकिन गुंडाधुर के ही कुछ साथियों ने निजी स्वार्थ में इस बात की मुखबिरी अंग्रेजों को कर दी और अंग्रेजों इसका फायदा उठाकर जश्न वाली जगह पर पहुंचकर चारों ओर से अंधाधुन्द गोलीबारी शुरू कर दी. इस गोलीबारी में 25 आदिवासी योद्धा वीरगति को प्राप्त किये, जबकि सात गुंडाधुर के साथियों को जगदलपुर में ले जाकर फांसी चढ़ा दिया, इस घटनाक्रम के दौरान गुंडाधुर खुद को अंग्रेजों के हाथों में नहीं आने दिए, किन्तु उसके बाद से आज तक गुंडाधुर किसी ने नहीं देखा, आदिवासियों की माने तो गुंडाधुर वायु में विलीन हो गए हैं……