आज भगवान जगन्नाथ स्वामी, रूठी पत्नी को मनाने आज मौसी के घर से वापस लौटेंगे जाने क्या है परंपरा…
पुरी : भगवान जगन्नाथ स्वामी, बीमारी के बाद स्वस्थ हुए बता दे की बलभद्र व सुभद्रा के साथ 20 जून को मौसी के घर चले गए थे। वहां एक सप्ताह रहने के बाद आज यानि 28 जुलाई को वापस अपने मूल मंदिर पहुंच जाएंगे। इस रथ यात्रा को ‘बाहुड़ा यात्रा’ के नाम से जानते हैं। इस दौरान कई तरह की परंपराओं को निभाया जाता है। इसके साथ ही जगन्नाथ रथ यात्रा का समापन हो जाता है। इसके बाद एक और अनोखी परंपरा निभाई जाती है जिसमें श्री जगन्नाथ जी मां लक्ष्मी को मनाते हैं।
जगन्नाथ मंदिर साल के 9 दिन खाली रहता है
जगन्नाथ यात्रा आरंभ होने के साथ श्रीनाथ, भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी गुंडिचा मंदिर चले जाते हैं। ऐसे में जगन्नाथ मंदिर का आसन खाली रहता है। इन दिनों में भगवान जगन्नाथ के खास दोस्त नील माधव आसन के सामने बैठते हैं। सामान्य दिनों में वह नजर नहीं आते हैं, क्योंकि वह जगन्नाथ जी के आसन के पीछे बैठे होते है। इसके बाद जब रथ यात्रा के बाद जगन्नाथ जी वापस अपने आसन में आते हैं, तो नील माधव मां लक्ष्मी के बगल में विराजमान हो जाते हैं।7 दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रहते हैं जगन्नाथ जी20 दिन से शुरू हुआ रथ यात्रा आज समाप्त हो रही है। इस दौरान जगन्नाथ जी अपने भाई और बहन के साथ गुंडिचा मंदिर में रहते हैं।
जी
जब भगवान श्री मंदिर पहुंचते हैं, तो वह एक रस्म निभाते हैं। जिसमें वह अपनी रूठी पत्नी मां लक्ष्मी को मनाते हैं। दरअसल, रुक्मिणी हरण एकादशी के दिन जगन्नाथ और रुक्मिणी का ब्याह हुआ। इसके दूसरे दिन ही पूर्णिमा होती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ 108 तालाबों में स्नान करते हैं। इसके बाद उन्हें बुखार आ जाता है और 15 दिनों के लिए इलाज के लिए एकांतवास में चले जाते हैं। बुखार सही होते ही वह अपने भाई और बहन के साथ मौसी के घर चले जाते हैं। वहीं दूसरी ओर विवाह के दौरान लगाई गई लक्ष्मी और जगन्नाथ की गांठ भी नहीं खुलती है। ऐसे में मां लक्ष्मी उदास हो जाती हैं। ऐसे में जब मां लक्ष्मी को पति जगन्नाथ जी नहीं मिलते हैं, तो वह अपनी जेठानी विमला (बलदाऊ की पत्नी) से पूछती है कि आखिर वह कहां गए? जैसे ही विमला उन्हें बताती है कि वह अपनी मौसी के घर गए है, तो अपनी जेठानी से आज्ञा लेकर तुरंत ही ससुराल के लिए निकल जाती हैं। जब मां लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर पहुंचती हैं, तो डर के मारे भगवान जगन्नाथ दरवाजा नहीं खोलते हैं और उनसे नहीं मिलते हैं।
मां लक्ष्मी पति की बेरुखी सहन नहीं कर पाती हैं और वह गुस्सा से तमतमा जाती हैं और दरवाजा के बाहर खड़े पति के रथ की एक लकड़ी निकालकर पहिया तोड़ देती हैं और वापस श्री मंदिर चली आती है। वहीं दूसरी ओर जगन्नाथ जी के भाई जैसे दोस्त नीलमाधव मां लक्ष्मी को धैर्य रखने की सलाह देते हैं और वह मां को भरोसा दिलाते हैं कि वह जगन्नाथ जी से सवाल-जवाब करेंगे।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ वापस अपने मंदिर आते हैं। जब वह वापस आते हैं, तो मां लक्ष्मी भी दरवाजा नहीं खोलती हैं। भगवान जगन्नाथ का रास्ता मां लक्ष्मी की दासियां रोकती हैं और दूसरी ओर बाबा के कुछ सेवक उन्हें हटाने का प्रयास करते हैं इस संस्कार को ‘निलाद्री बिजे’ कहा जाता है। आखिरकार नीलमाधव किसी तरह दोनों का सुलह करा देते हैं और अंत में मां लक्ष्मी मान जाती हैं। इसके लिए उन्हें एक खास तोहफा मां लक्ष्मी को देना होता है और ये तोहफा सफेद रसगुल्ले होते हैं।