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टी एस सिंहदेव के बार बार दिल्ली दौरे से स्वास्थ्य महकमा हो रहा बदहाल, दिल्ली नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए अपनी जिम्मेदारी से चूक खा रहे हैं बाबा

सोनु साहू रायपुर :- बाबा टी एस सिंहदेव अपनी महत्वाकांक्षा के चलते लगातार घिरते चले जा रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश में बार बार दिल्ली दौरे से उनके महत्वपूर्ण विभागों का काम पटरी से उतर रहा है। उनके अपने क्षेत्र में भी लगातार अनदेखी से माहौल उनके खिलाफ हो रहा है। कुपोषण से पंडो जनजाति के लोगों की लगातार मौत के बाद भी बाबा का उन परिवारों से मिलने के लिये नही जाना और कोविड व अन्य बीमारियों के प्रकोप के बीच स्वास्थ्य महकमे की अनदेखी कर दिल्ली में लॉबिंग के लिए डेरा जमाना चर्चा का विषय बना हुआ है।


टीएस सिंहदेव शनिवार रात एक बार फिर दिल्ली पहुंचे थे। वे दिल्ली में छत्तीसगढ़ के प्रभारी महासचिव पी एल पुनिया सहित अन्य नेताओं से मिलना चाहते थे। लेकिन पुनिया सीडब्ल्यूसी बैठक के बाद बाराबंकी चले गए। देव की दिल्ली में कोई भी महत्वपूर्ण मुलाकात नही हो पाई।
बाबा को सोमवार शाम को रायपुर वापस जाना था लेकिन अंबिकापुर स्थित मेडिकल कॉलेज में नवजात बच्चों की मृत्यु के मामले को तूल पकड़ता देख उन्हें अचानक रविवार शाम को ही वापस लौटना पड़ा। हैरानी की बात ये है कि टी एस देव के दिल्ली आने के पहले ही ये घटना हो चुकी थी। उन्हें पूरी जानकारी भी थी। फिर भी वे दिल्ली चले आये। माना जा रहा है कि आलाकमान ने उन्हें निर्देश दिया है कि वे अपने काम पर फोकस करें क्योंकि स्वास्थ्य महकमे की बिगड़ती तस्वीर का प्रतिकूल असर कांग्रेस और सरकार की छवि पर भी पड़ रहा है।
गौरतलब है कि आलाकमान पर दबाव बनाने के मकसद से टी एस सिंह देव पिछले कई महीनों से दिल्ली में ज्यादा और रायपुर में कम रहे हैं। कोविड के प्रकोप के बीच भी वे दिल्ली में लगातार 20 दिन से ज्यादा रुके थे। इसके बाद भी कभी जन्मदिन तो कभी पारिवारिक उत्सव के बहाने वे लगातार दिल्ली आते रहे।


स्वास्थ्य विभाग की बदहाली को लेकर भाजपा की घेराबंदी के बीच कई बार मुख्यमंत्री को दखल देना पड़ा। ये भी टी एस देव को नागवार लगा। इसकी शिकायत भी उन्होंने आला नेतृत्व से की थी। लेकिन देव की अपने विभागों की लगातार अनदेखी की रिपोर्ट आलाकमान को मिल रही है।

टीएस सिंहदेव का एजेंडा विपक्ष को सूट कर रहा है। कुछ दिन पूर्व देव ने बस्तर से आये आदिवासियों से रायपुर में मिलकर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। हालांकि उनका ये दांव भी नही चला और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासी समुदाय से विभागीय मंत्री के साथ मिलकर उनकी शिकायतों को दूर किया।
सवाल उठ रहा है कि बाबा अपने इलाके में ही चार माह में करीब 23 पंडो जनजाति के लोगों की मौत पर क्यों नही पिघले। वहां उन्होंने जाने की जहमत भी नही उठाई।


उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश की छवि कामकाज के मामले में आक्रामक है। निर्णायक मामलो में तेजी से कदम उठाते हैं। आदिवासी मामलो के अलावा जसपुर की ताजा घटना में भी उनकी तेजी ने विपक्ष का एजेंडा कामयाब नही होने दिया। जबकि देव ज्यादातर मामलों में विपक्ष के एजेंडे का ही साथ देते नजर आ रहे हैं।
फिलहाल बाबा का एक और दिल्ली दौरा उनकी इच्छा के मुताबिक नही रहा। वे किसी महत्वपूर्ण नेता से नही मिल पाए। न ही आलाकमान से उन्हें कोई भरोसा ही मिल पाया है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इच्छा पालने में कोई बुराई नही लेकिन अपनी महत्वाकांछा में लक्ष्मण रेखा नही लांघना चाहिए। बाबा यही सूक्ष्म फर्क कर पाने में असफल हो रहे हैं।

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